इत्तू सा तो आज का दिन नागवार रहा
नाक तक भागमभाग छूने को तलबगार रहा
कभी खुशियों में खुश भी हो लिए तो कभी
अनचाहा मुस्कान भी होंठों को नागवार रहा
हम ख्वाहिशों को पकड़े वो हाथ छुड़ाती रही
उसके नखरों से मन खिन्न खुशगवार रहा
ना ज्यादा पाने की चाहत ना कम में समझौता
शाम ढ़लते-ढ़लते ऐ- ज़िन्दगी तेरा आभार रहा
अब रौशनी चल के आई ब मेरे आंगन में तो
मेरी तरफ से अभिनंदन स्वागत बारम्बार रहा॥
No comments:
Post a Comment