Friday, February 24, 2023

अनचाहा मुस्कान भी होंठों को नागवार रहा

इत्तू सा तो आज का दिन नागवार रहा
नाक तक भागमभाग छूने को तलबगार रहा 
कभी खुशियों में खुश भी हो लिए तो कभी 
अनचाहा मुस्कान भी होंठों को नागवार रहा 
हम ख्वाहिशों को पकड़े वो हाथ छुड़ाती रही 
उसके नखरों से मन खिन्न खुशगवार रहा 
ना ज्यादा पाने की चाहत ना कम में समझौता 
शाम ढ़लते-ढ़लते ऐ- ज़िन्दगी तेरा आभार रहा 
अब रौशनी चल के आई ब मेरे आंगन में तो 
मेरी तरफ से अभिनंदन स्वागत बारम्बार रहा॥ 

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