Saturday, April 13, 2019

इक

इक ख़्वाब मुजस्सम होने से वीरान हुआ,
इक जुगनू हाथ में आया,तो बेजान हुआ।
इक पेड़ पे आए फल,तो परिंदे लौट आए,
इक शख़्स का बचपन बीता तो अन्जान हुआ।
इक देखने वाला देख चुका जब आँखों में,
फिर दिल में अनदेखे का हर मेहमान हुआ।

इक़ ख़्वाब से जैसे सौ ताबीरें निकली हों,
इक चेहरा कितने चेहरों की पहचान हुआ।

मुजस्सम=साकार
ईज़ाद=खोज
हिजरत=सफ़र
सोग=दु:ख

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