आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
बेहतर दिनों की आस लगाते हुए 'ऐ दोस्त', हम बेहतरीन दिन भी गँवाते चले गए!
इश्क़ में वफ़ा की आस लगाए हुए, ताउम्र हम धोखे पे धोखे खाते चले गए!
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