आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हम भी बरगद के दरख़्तों की तरह हैं, जहाँ दिल लग जाए ताउम्र खड़े रहते हैं!
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