आईना कब तक बनाओगी मुझको,
खुदसे कब मिलवाओगी मुझको!
अपने हाथ का कंगन समझ रखी हो क्या,
आखिर कब तक घुमाओगी मुझको !!
खुदसे कब मिलवाओगी मुझको!
अपने हाथ का कंगन समझ रखी हो क्या,
आखिर कब तक घुमाओगी मुझको !!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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