प्यास बुझ जाए तो शबनम खरीद सकता हूं,
ज़ख़्म मिल जाए तो मरहम खरीद सकता हूं।
ये मानता हूं मैं, दौलत नहीं कमा पाया,
मगर तुम्हारा हर एक गम खरीद सकता हूं।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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