आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मिजाज में थोड़ी सख्ती लाजमी है ऐ दोस्त, लोग पी जाते, अगर समन्दर खारा ना होता!
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