जिंदगी गुलजार है तेरे हर पल के साथ,
काश गुजर जाए हर लम्हा तेरे आज और कल के साथ.
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
जिंदगी गुलजार है तेरे हर पल के साथ,
काश गुजर जाए हर लम्हा तेरे आज और कल के साथ.
ऐ ज़िन्दगी हम तुझे
जब भी आज़माते हैं ।
हम ख्वाब की तरह
हक़ीक़त में टूट जाते हैं ।।
कभी तेरे बहाने थे ,
कभी मेरे बहाने हैं |
कभी तुमको मुहब्बत हो ,
कभी हमको ये चाहत थी!!!
तू मेरा हो ना सकता था
मैं तेरी बन ना सकती थी!!
वफा तब भी मैं करती थी,
वफा अब भी मैं करती हूं!!!
तेरे जब भी बहाने थे,
तेरे अब भी बहाने है!!
चलो अब हो चुका अपना,,
ना तू कल भी मेरा अपना!
ना अब भी है मेरा अपना!!
कभी इस सिम्त की बातें!
कभी उस सिम्त की बातें!!
अब इन बातों में क्या रखा
तेरे अपने फ़साने हैं!!!
कभी तेरे बहाने थे,
कभी मेरे बहाने हैं!!!
कभी हमको ये चाहत थी,
कभी अपनी ये ख्वाहिश थी
कभी तुमको मुहब्बत हो!
कभी तुमको मुहब्बत हो!!!
कितने सुहाने थे दिन,
कौन ले गए वो पल छिन।
कोई लौटा दे वो बचपन,
याद करके जिसे,
फिर धड़़क जाए धड़़कन।
वो मासूमियत खो गई है कहीं,
अब तो खुद में भी खुद हैं ही नहीं।
दिखाता वो खुद को है ऐसा यहाॅं,
नाचता है वो जैसे नचाता जहां।
न जाने छोड़ आया है खुद को कहाॅं,
ढूंढता फिर रहा है यहॉं से वहाॅं।
शायद खुद से ही रूठा हुआ है,
लगता भीतर से टूटा हुआ है।
लम्बी ना यूं खुद की रातें कर,
खुद से भी जरा बातें कर।
इक बार फिर बच्चा बन,
ढूंढ ला वो बचपन,
याद कर जिसे फिर धड़क जाए धड़कन।।
अपनों के जो संग चले,
अब ऐसा इंसां नेक कहाॅं।
सही ग़लत में फर्क करें,
अब ऐसी नजरें देख कहाॅं।
हम से तुम हो गए,
"मैं" जो बीच में आया।
कड़ी दोपहरी धूप में,
दूर हुआ खुद का भी साया।
देखो कैसी यह होड़ लगी,
किसके लिए यह दौड़ लगी ।
इंसां को ना इंसां से वास्ता,
अहम ने चुना हिंसा का रास्ता।
देखो कैसे यह भटक रहा,
इंसां, इंसां की नजर में खटक रहा।
प्रेम भूल माया में फंसा,
इंसां तू इंसां पर ही हंसा।
अब भी जरा ले खुद को संभाल,
फिर ना करना कोई सवाल।
दिनभर की थकन, रातभर तेरी याद।
आती है अब हर बात पर तेरी याद।।
अस्सी से दशाश्वमेध तक तेरी स्मृति,
काशी के हर इक घाट पर तेरी याद।
कई वर्ष दे गया कुछ दिन का कारवां,
गलियों में संजोता है शहर तेरी याद।
ज्यादा नहीं तो संभवतः आधी उमर,
लग जाए बटोरूं जो अगर तेरी याद।
गई तो साथ में तेरे शहर भी चल पड़ा,
अंतस में कर गई है यूं असर तेरी याद।
लमही सा हृदय तेरा है मुंशी की जीवनी ,
लम्हों का मकां,स्वप्नो का नगर तेरी याद।
तू तुलसी मानसा सी मैं चुनार का किला,
गोदौलिया बाजार की है नज़र तेरी याद।
हो सार तुम संसार की ओ मणिकर्णिका,
सारनाथ की राहों में रहगुजर तेरी याद।
चौसठ योगिनी सी तुम, गंगा सी हो सरल,
संकट मोचन धाम में भी अमर तेरी याद।
रौनक है दुर्गाकुंड की, लंका की दमक है,
श्री काशी विश्वनाथ में भी बसर तेरी याद।
जब से तुमने छुआ दर्द दिल का बढ़ा,
फर्क रात और दिन का ये जाता रहा।
जिस डगर पर भटक संग तुम्हारे चले
धूप क्या छांव क्या अब पता ना रहा।
जो चुभे थे पैर में कांच के वो टुकड़े थे
जाम टूटकर जब गिरा मुस्कराता रहा।
बिजलियां दिखी वहां आग लग गई यहां
गर्जनाएं मेघ की सुनकर दिल दहल गया।
जब से तुमने छुआ दर्द दिल का बढ़ा
फर्क रात और दिन का ये जाता रहा।
फकत तेरी यादें ही नही, तेरे इल्ज़ाम भी हैं।
तेरी तस्वीर मे छिपे , कुछ तेरे पैगाम भी हैं।।
मेरे कातिल,यूं अयादतमंद बनकर आये थे।
लुटेरों मे गैर ही नही, अपनों के नाम भी हैं।।
अंधेरों का सबब जानकर, तुम क्या करोगे।
तन्हा हम ही नही,ये सुबह-ओ-शाम भी हैं।।
सिर्फ फराखदिली अपनी,बस याद है तुम्हे।
मगर फहरिस्त मे, तेरे कुछ इंतकाम भी हैं।।
हर बात के लिए , क्यूं कोसते हो तुम हमे।
वक्त के साथ ही वजह, और तमाम भी हैं।।
मेरी हर तहरीर को, कभी ध्यान से पढ़ना।
मेरे उन्हीं खतों मे , तेरे लिए सलाम भी हैं।।
क्या हर अहसान का तुम्हें,बदला चाहिए।
खामोश लबों के इकरार , गुमनाम भी हैं।।
अपनी गुस्ताखियों पर, कुछ गौर करें हम।
यहां रिश्ते निभाने के, कुछ निजाम भी हैं।।
खुद्दारी-ओ-वकार तो,जरूरी है जिंदगी मे।
मगर हममें से कुछ,अहम के गुलाम भी हैं।।
शुक्रगुज़ार बने रब के,जो नवाजा है उसने।
बेशक उसके हाथ मे,सबकी लगाम भी हैं।।
उसने जो चाहा वो काम कर सका ना मैं।
उसकी कसौटी पर खरा उतर सका ना मैं।।
उसने चाहा था फूलों को सजाना मुझमें।
लेकिन उसके लिए ज़र्फ़ बन सका ना मैं।।
एक मुद्दत से बैठा हूॅं समंदर के किनारे मैं।
तुंद प्यास थी फिर भी बुझा सका ना मैं।।
कई बार चाहा हाल-ए-दिल कह दूं उससे।
दिल की बात लबों पर ला सका ना मैं।।
सियाह रात में जल रहा हूं दीये की तरह।
किसी मुसाफ़िर को राह दिखा सका ना मैं।।
ज़र्फ़ : फूलदान। तुंद : प्रबल।
पलक झपकते ही मंज़िल पर
जा ठहरता है।
यह ज़िंदगी का सफ़र इतना
मुख़्तसर क्यों है।
मासूमियत की चादर में लिपटा, सपनों का साज,
ख्वाबों की गलियों में बसा, हर पल कुछ नया राज।
चाँदनी रातों में बिखरी, चमकीली चाँदनी की रौशनी,
हवाओं की लहरों में लहराती, जीवन की सुनहरी सी धुनी।
बचपन की धुली रेत की तरह हल्की,
हर ख्वाब में छुपी वो प्यारी सी मुस्कान हूँ।
जीवन के सफर में हर कदम पर संगीन,
पर दिल से मैं हमेशा मसूमियत से भरा हूँ।
सपनों की दुनिया में बसा वो प्यारा सा गीत,
मैं मासूमियत की धुन हर पल गुनगुनाता हूँ।
मेरे दिल की चाहत है
मेरी पलकों पर तुम
सपना बनकर छा जाओ
मेरी चाहत बन जाओ।
मेरी इन होंठों पर तुम
मुस्कान बनकर छा जाओ
मेरी धड़कन बनकर तुम
मेरी सांसें बन जाओ
मेरी चाहत बन जाओ।
मेरी इन हाथों में तुम
कंगन बन से जाओ
मेरे माथे की बिंदिया की
लाली बन सज जाओ
मेरी चाहत बन जाओ।
ख़ामोशी गहन दृढ भाव है।
अंतर्मन का शोर है।
स्वयं को तलाशता ।
मानव चहुंओर है।।
ख़ामोशी की स्तब्धता में।
द्वंद है, चपलता है।
सफलता है ,विफलता है।
विजय और पराजय की भावुकता है।।
ख़ामोशी जीवन का अनुभव सार है।
यह शान्त नहीं वाचाल है।
अंतर्द्वंद का वर्णित रूप है।
धूप में छांव, छांव में धूप है।।
उम्र के इस मोड़ पर आकर
क्यों उदास रहते हो
जिंदगी को क्यों नीरस बनाते हो
इन अँधेरों से बाहर निकलो।
एक बार फिर से उमंगों को
मन में जगाओ
जिंदगी को फिर से जीने का
इक का नया अंदाज़ बनाओ।
जिंदगी के
खुशनुमा लम्हों की बातें करो,
जिंदगी को फिर से
रोमांटिक बनाने की कोशिश करो।
दिल में
एक चाहत फिर से उठने लगी है,
चहकने की
आरज़ू दिल को फिर से होने लगी है।
आज झाँक कर
खुशियों को याद करती हूँ,
आज दिल को फिर उन
लम्हों में जीने की चाहत होने लगी है।
उत्साहित होकर अपने आस-पास
मैं नजरों को दौड़ाती हूं,
अपने आस-पास की
दुनिया में अब खो जाती हूं।
अब मन करता है
खो जाऊँ पुरानी यादों में अपने आप में,
उस संगीत की
धुन में जो हम सब को भाती है।
की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ
थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ
गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो
डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ
मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे
हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ
रक़्स-ए-सबा के जश्न में हम तुम भी नाचते
ऐ काश तुम भी आ गए होते सबा के साथइक्कीसवीं सदी की तरफ़ हम चले तो हैं
फ़ित्ने भी जाग उट्ठे हैं आवाज़-ए-पा के साथ
ऐसा लगा ग़रीबी की रेखा से हूँ बुलंद
पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ
Kaifi Azmi
याद आती रहीं हर रात मुझे तुम्हारी आँखें,
जाने कितने दिनों से मैनें नहीं देखीं ऑंखें ।
वो आँखें जिनमें बसती थी दुनिया हमारी ,
अब किसी और की दुनिया बन गई ऑंखें ।
मैनें आँखों में कई ख़ाब-ओ-अरमां रखे थे,
मेरे पास से जब गई तो सब ले गईं ऑंखें
दर्द- ए-सफ़र में जब कोई साथ नहीं मेरे,
याद आई उन आँखों की भर आई ऑंखें!
ये आँखे भी कमबख़्त अभी समझ न पाईं ,
उन आँखों की जगह नहीं भर सकतीं ऑंखें!
एक सफर से गुजरा हूं, एक सफर चल रहा हूं,
एक सफर साथ था तू, एक सफर में अकेला हूं।
तुझे अपना कहने का हक़ जो मिला है,
मिल गया सब कुछ, बाकी कुछ नहीं है।
इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और
या इस में रौशनी का करो इंतिज़ाम और
आँधी में सिर्फ़ हम ही उखड़ कर नहीं गिरे
हम से जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और
मरघट में भीड़ है या मज़ारों पे भीड़ है
अब गुल खिला रहा है तुम्हारा निज़ाम और
घुटनों पे रख के हाथ खड़े थे नमाज़ में
आ जा रहे थे लोग ज़ेहन में तमाम और
हम ने भी पहली बार चखी तो बुरी लगी
कड़वी तुम्हें लगेगी मगर एक जाम और
हैराँ थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग
शीशा चटख़ गया तो हुआ एक काम और
उन का कहीं जहाँ में ठिकाना नहीं रहा
हम को तो मिल गया है अदब में मक़ाम और
दुष्यंत कुमार