Tuesday, February 28, 2023

बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी

उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
कि तबीअ'त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी

अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
 

अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़
सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी

पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ
आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी
 

निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल
वो तिरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी

चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
 

क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार
ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी

Bahadur Shah Zafar

जिस दिन आऊंगा तेरे शहर में

जिस दिन आऊंगा तेरे शहर में
तुमसे मिलूंगा जरुर,पर चुप रहूंगा 
दिल की पीड़ा छुपाकर सबसे 
पर मैं खुश रुहूंगा 
आंखों में तो पानी आएगा 
पर एक भी बूंद चेहरे पर गिरने नहीं दूंगा 
जिस दिन आऊंगा तेरे शहर में 

हर गली तेरे शहर की ,तेरी याद तो दिलाएगी 
मैं घूमूंगा इन गलियों में 
पर खुद को रोने नहीं दूंगा 
हर रात में हर बात याद आएगी 
तो अपनी आँखों को सोने नहीं दूंगा 
जिस दिन आऊंगा तेरे शहर में 
तुमसे मिलूंगा जरुर,पर चुप रहूंगा 

Monday, February 27, 2023

ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या

ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या 
दुनिया से ख़ामुशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या 

हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने 
इक ख़्वाब हैं जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या

अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ 
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या 

दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र 
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाएँ हम तो क्या 


मुनीर नियाज़ी


इतना मसरूफ़ कर लिया खुद को

इतना मसरूफ़ कर लिया खुद को 
हमसे सोचा नहीं गया तुम को। 

Friday, February 24, 2023

अनचाहा मुस्कान भी होंठों को नागवार रहा

इत्तू सा तो आज का दिन नागवार रहा
नाक तक भागमभाग छूने को तलबगार रहा 
कभी खुशियों में खुश भी हो लिए तो कभी 
अनचाहा मुस्कान भी होंठों को नागवार रहा 
हम ख्वाहिशों को पकड़े वो हाथ छुड़ाती रही 
उसके नखरों से मन खिन्न खुशगवार रहा 
ना ज्यादा पाने की चाहत ना कम में समझौता 
शाम ढ़लते-ढ़लते ऐ- ज़िन्दगी तेरा आभार रहा 
अब रौशनी चल के आई ब मेरे आंगन में तो 
मेरी तरफ से अभिनंदन स्वागत बारम्बार रहा॥ 

अब कहाँ उसको मेरी आदत है

वो बदल बैठा अपनी फ़ितरत को ।
अब कहाँ उसको मेरी आदत है ।। 

दुष्यंत कुमार के चुनिंदा शेर

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं पर कहता नहीं 
बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार 


मेरे दिल पे हाथ रक्खो, मेरी बेबसी को समझो,
मैं इधर से बन रहा हूं, मैं इधर से ढह रहा हूं   
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सहने को हो गया इकट्ठा इतना सारा दुख मन में 
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुमको भूल गया 


तुमको निहारता हूं सुबह से ऋतम्बरा 
अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा 

एक आदत सी बन गई है तू 
और आदत कभी नहीं जाती 


मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे
मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएंगे 

ये मूरत बोल सकती है अगर चाहो 
अगर कुछ शब्द कुछ स्वर फेंक दो तुम भी 


तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो
तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं 

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी 
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है 


घंटियों की गूंज कानों तक पहुंचती है 
एक नदी जैसे दहानों तक पहुंचती है 

Wednesday, February 22, 2023

जो दिल में है बे’शुमार है

जो दिल में है बे’शुमार है

तेरा प्यार है ए'तबार है । 
तू भूल कर मुझे जी सके 
तुझे इसका भी इख़्तियार है।। 


आस का इक दिया मैं जलाता रहा

साथ जितना मिला हमको कम ही रहा
प्यास जैसी थी वैसी बनी रह गयी

दोपहर की सुलगती हुई धूप में
हमने फेरे लगाये थे कितने यहाँ
जानते हैं  ये पत्थर पड़े राह के
हमने मोती गिराये थे कितने यहाँ
ख़्वाब था एक वो ख़्वाब ही रह गया
और जीने को बस ज़िंदगी रह गयी

था भरोसा मुझे तुम मिलोगी कभी
आस का इक दिया मैं जलाता रहा
आँख सावन हुई याद जब- जब किया
प्यास मन की मैं ऐसे बुझाता रहा
एक फ़साना मेरा अनकहा रह गया
एक कहानी मेरी अनसुनी रह गयी
 

अब समय आ गया है विदाई का तो
याद फिर आ गयी हैं वो बातें सभी
देख लेना कभी हम मिलेंगे नहीं
ये कसम खाई थी हमने झूठी कभी
इक महल बनने से पहले ही ढह गया
नींव बस हाशिये पर पड़ी रह गयी


इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए

इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए 

आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए 

आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं 
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए 
ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों 
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए 

ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें 
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए 
 

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे 
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए 

-

मुनव्वर राना

तू इतना क्यूं इतरावै?

तू इतना क्यूं इतरावै?
बात समझ नहीं आवै। 
रोता आया जग में तू..., 
सबको रोता छोड़ जावै। 
अच्छी करनी कर शुरू, 
मत दूसरों को सतावै। 
पैसा गाड़ी कोठी बंगले, 
कोई तेरे साथ न जावै। 
व्यवहार बना तू अपना, 
चार लोग ही तुझे उठावें। 
सफर करले चाहे गाड़ी में, 
अंत में अर्थी ही काम आवै। 
गिन गिन रखे हैं करोड़ों, 
उस वक्त कफन ही पहनावें। 
जिनके बीच तू आया, 
अंत समय वही ना रख पावें। 
कैसी रीत चली आई? 
धन दौलत जायदाद गहने छोड़, 
तेरी किसी चीज से हाथ ना लगावें। 
अरे मानव!अपना अंत समय सुधार, 
जिससे तुझे मोक्ष मिल जावै। 

मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?

मैं क्यों प्यार किया करता हूँ? 


सर्वस देकर मौन रुदन का क्यों व्यापार किया करता हूँ? 
भूल सकूँ जग की दुर्घातें उसकी स्मृति में खोकर ही 
जीवन का कल्मष धो डालूँ अपने नयनों से रोकर ही 
इसीलिए तो उर-अरमानों को मैं छार किया करता हूँ। 
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ? 

कहता जग पागल मुझसे, पर पागलपन मेरा मधुप्याला 
अश्रु-धार है मेरी मदिरा, उर-ज्वाला मेरी मधुशाला 
इससे जग की मधुशाला का मैं परिहार किया करता हूँ। 
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ? 

-नीरज 
 

कर ले जग मुझसे मन की पर, मैं अपनेपन में दीवाना 
चिंता करता नहीं दु:खों की, मैं जलने वाला परवाना 
अरे! इसी से सारपूर्ण-जीवन निस्सार किया करता हूँ। 
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ? 
 

उसके बंधन में बँध कर ही दो क्षण जीवन का सुख पा लूँ 
और न उच्छृंखल हो पाऊँ, मानस-सागर को मथ डालूँ 
इसीलिए तो प्रणय-बंधनों का सत्कार किया करता हूँ। 
मैं क्यों प्यार किया करता हूँ? 


Monday, February 20, 2023

उस दिन जब जीवन के पथ में

उस दिन जब जीवन के पथ में,
छिन्न पात्र ले कंपित कर में,
मधु-भिक्षा की रटन अधर में,
इस अनजाने निकट नगर में,
आ पहुँचा था एक अकिंचन।

उस दिन जब जीवन के पथ में,
लोगों की आँखें ललचाईं,
स्वयं माँगने को कुछ आईं।
मधु सरिता उफनी अकुलाईं,
देने को अपना संचित धन।

उस दिन जब जीवन के पथ में,
फूलों ने पँखुरियाँ खोलीं,
आँखें करने लगीं ठिठोली;
हृदय ने न सम्हाली झोली,
लुटने लगे विकल पागल मन।


उस दिन जब जीवन के पथ में,
छिन्न पात्र में था भर आता—
वह रस बरबस था न समाता;
स्वयं चकित-सा समझ न पाता
कहाँ छिपा था, ऐसा मधुबन!

उस दिन जब जीवन के पथ में,
मधु-मंगल की वर्षा होती,
काँटों ने भी पहना मोती,
जिसे बटोर रही थी रोती—
आशा, समझ मिला अपना धन।


Jaishankar Prasad

Friday, February 17, 2023

वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो 

ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो 

सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती 
दिल की धड़कन को भी बीनाई बना कर देखो 

पत्थरों में भी ज़बाँ होती है दिल होते हैं 
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजा कर देखो 
 

वो सितारा है चमकने दो यूँही आँखों में 
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बना कर देखो 
 

फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है 
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो 


निदा फ़ाजली

चलो फिर से दिल जलाएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ 
चलो फिर से दिल जलाएँ 

जो गुज़र गईं हैं रातें 
उन्हें फिर जगा के लाएँ 
जो बिसर गईं हैं बातें 
उन्हें याद में बुलाएँ 
चलो फिर से दिल लगाएँ 
चलो फिर से मुस्कुराएँ 

किसी शह-नशीं पे झलकी 
वो धनक किसी क़बा की 
किसी रग में कसमसाई 
वो कसक किसी अदा की 
कोई हर्फ़- ए-बेमुरव्वत 
किसी कुंज-ए-लब से फूटा 
वो छनक के शीशा-ए-दिल 
तह-ए-बाम फिर से टूटा 

ये मिलन की ना मिलन की 
ये लगन की और जलन की 
जो सही हैं वारदातें 
जो गुज़र गईं हैं रातें 
जो बिसर गई हैं बातें 
कोई उन की धुन बनाएँ 
कोई उन का गीत गाएँ 
चलो फिर से मुस्कुराएँ 
चलो फिर से दिल जलाएँ 
-फैज


Wednesday, February 15, 2023

तेरे इश्क पर जो मेरा इख्तियार है

तेरे इश्क पर जो मेरा इख्तियार है

पक्का है अब कंगाल नहीं मरुंगा मैं 

तेरी नज़रों के दायरे में वजूद है मेरा 
पक्का है अब बेहाल नहीं मरुंगा मैं 

मेरा ज़िक्र है तेरी गुफ्तगू में अक्सर 
पक्का है लिए ख्याव नहीं मरुंगा मैं 

रहनुमा जो है तू मेरा राहे जिंदगी में 
पक्का है अब गुमराह नहीं मरुंगा मैं 

पहचान जो मिली है तेरे नाम से मुझे 
पक्का है अब गुमनाम नहीं मरुंगा मैं 

थाम लिया है मुझे जो तेरे हाथों ने 
पक्का है लाखों लाख नहीं मरुंगा मैं 

Valentine Day Love Poems

I knew when I met you

That we were meant to be twin souls;
I have some great ideas for
Our sustainable development goals.

*

If you ever doubt that you and I
Are a cool alliance,
Just remember that I’m really, really
Good at compliance.

*

There’s a very good reason
Why I am here;
I heard you needed
A willing volunteer.

*

If by chance this 14th Feb
You should find yourself available,
Would you like dinner and a drink
And… well, my plan is scaleable.


तुझे पाने की हसरतें

तुझे पाने की हसरतें, तुझे हासिल होंने की जुस्तजू.

तेरे ख्याल में रहने की आदतें फिर तुझे अक्स में ढूंढना हूबहू!! 
तू बस गई है ज़हनों ख्याल में तू हो जा इस दिल की ये कर रहा है मिन्नतें.! 
वो तेरी मुस्कुराहटें के जिसपे आंखों से होंने लगी शरारतें, 
आ करीब आ के तेरे जिस्म को तराश दें, तू समझ ले बस यही मेरे दिल की मसलहतें !

हर तिथि है त्योहार प्यार का

हर तिथि है त्योहार प्यार का
इसे हुलसने दो।
जीवन के निर्झर प्रवाह में
तन-मन बहने दो।  

जिसके होने से जीवन जीवन-सा लगता है
छंद धरा का महाकाव्य-सा मोहक लगता है
चाहों के बादल बोते हैं सीपों में मोती
मन का सागर शंख-सरीखा बजता रहता है

प्यार रहे जीवन में तो फिर चिर वसंत होता 
प्यार न हो तो मोती-माणिक धूलसदृश होता 
प्यार न हो तो यह सारा जग बैरागी हो जाए
प्यार रहे तो मरुथल भी जैसे बगिया बन जाए

प्यार दिलों की धड़कन में कुछ ऐसे पलता है
मंद मंद सांसों में मलयानिल - सा बहता है
प्रणयी जन की आकुलता का छोर नहीं होता
सांझ न होती, रात न होती, भोर नहीं होता 

अभी धरा पर मारकाट की दुनिया कायम है
नाजी संहारों की यादें मन में कायम हैं
अभी नस्लवादी सत्ताएं दुनिया भर में हैं
अभी प्रेम की भव बाधाएं सचमुच कायम हैं
 

प्रेम सृष्टि का मूल प्रेम से निर्मित यह दुनिया
ताल छंद में गाता  हो ज्यों कोई निरगुनिया
छंद जहां च्युत होता, यति-गति सभी उलट जाती
पल भर में तलवारें खिंचतीं,  सृष्टि सिहर जाती

जीवन में स्फीति बहुत है , सार बहुत कम है
ऊँच नीच के रार बहुत हैं, प्यार बहुत कम है
रूठी रूठी सी लगती है कभी कभी दुनिया 
मान बहुत उसमें है पर मनुहार बहुत कम है

इसको नित सींचो तुलसी को देते ज्यों  पानी
इसकी गुलमेंहदी - सी आभा, रंग इसका धानी
इसका मन मारुत-सा चंचल इसका वेग प्रवाही
इसकी छाया में सजती  है मौसम की तरुणाई 

इसे  पनपने दो धरती पर 
इसे बिहँसने दो
कल्पवृक्ष है यह जीवन का
इसे सँवरने दो।

हमे तुम भूल सकते हो

शिकायत भी लबों पर हम

न इसके बाद रक्खेंगे । 
हमे तुम भूल सकते हो 
तुम्हें हम याद रक्खेंगे ।। 

Monday, February 13, 2023

सुमित्रानंदन पंत की कविता- अमर स्पर्श

खिल उठा हृदय,

पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय!

खुल गए साधना के बंधन,
संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।

क्यों रहे न जीवन में सुख दुख
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!

तन में आएँ शैशव यौवन
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!

जो नित्य अनित्य जगत का क्रम
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
जग से परिचय, तुमसे परिणय!

तुम सुंदर से बन अति सुंदर
आओ अंतर में अंतरतर,
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर
वरदान, पराजय हो निश्चय !

तुझ से मिलने की आरज़ू की है


मैंने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
तुझ से मिलने की आरज़ू की है
तेरे जाने के ब'अद भी मैंने
तेरी ख़ुशबू से गुफ़्तुगू की है

जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है

जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
लिबास-ए-मुफ़्लिसी में कितनी बे-क़ीमत नज़र आती
यहाँ तो जाज़बिय्यत भी है दौलत ही की पर्वर्दा
ये लड़की फ़ाक़ा-कश होती तो बद-सूरत नज़र आती
 

जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से

जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
दूर मत जाओ लौट भी आओ
हो गईं फिर किसी ख़याल में गुम
तुम मिरी आदतें न अपनाओ
 

इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद

इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
था बस इक ना-रसाई का रिश्ता
मेरे और उस के दरमियाँ निकला
उम्र भर की जुदाई का रिश्ता
 

पास रह कर जुदाई की तुझ से

पास रह कर जुदाई की तुझ से
दूर हो कर तुझे तलाश किया
मैं ने तेरा निशान गुम कर के
अपने अंदर तुझे तलाश किया

जौन एलिया

आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था

 आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था

आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था

वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता न था नज़र को नज़र का क़ुसूर था
 

कोई तो दर्दमंदे-दिले-नासुबूर* था        (*दर्दमंदे-दिले-नासुबूर - अधीर हृदय का हितैषी)
माना कि तुम न थे, कोई तुम-सा ज़रूर था

लगते ही ठेस टूट गया साज़े-आरज़ू*      (*साज़े-आरज़ू - अभिलाषा रूपी साज़) 
मिलते ही आँख शीशा-ए-दिल चूर-चूर था
 

ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ूने-तमन्ना* ज़रूर था   (*ख़ूने-तमन्ना - आकांक्षा का ख़ून)

साक़ी की चश्मे-मस्त का क्या कीजिए बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था
 

जिस दिल को तुमने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था

देखा था कल ‘जिगर’ को सरे-राहे-मैकदा*    (*सरे-राहे-मैकदा - मधुशाला के रास्ते में)
इस दर्ज़ा पी गया था कि नश्शे में चूर था

जिगर मुरादाबादी

Marry me

Boy: Wanna hear a joke?

Girl: Of course

Boy: Knock, knock!

Girl: Who's there?

Boy: Marry

Girl: Marry, who?

Boy: Marry me

बनी थी कुछ इक उस से मुद्दत के बाद

बनी थी कुछ इक उस से मुद्दत के बाद


सो फिर बिगड़ी पहली ही सोहबत के बाद

जुदाई के हालात मैं क्या कहूँ
क़यामत थी एक एक साअत के बाद

मुआ कोहकन बे-सुतूँ खोद कर
ये राहत हुई ऐसी मेहनत के बाद

लगा आग पानी को दौड़े है तू
ये गर्मी तिरी इस शरारत के बाद

कहे को हमारे कब उन ने सुना
कोई बात मानी सो मिन्नत के बाद

सुख़न की न तकलीफ़ हम से करो
लहू टपके है अब शिकायत के बाद

नज़र 'मीर' ने कैसी हसरत से की
बहुत रोए हम उस की रुख़्सत के बाद

मीर तक़ी मीर