आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हफ्ते भर में , बिखर चुके जिस्म को, एक इतवार ही आता है, समेटने को!
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