दुष्यंत कुमार के तीन शे'र –
1)
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
2)
थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ निकलने दो
कल देखोगी कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे
3)
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
No comments:
Post a Comment