आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या, जिस पथ में बिखरे शूल न हों नाविक की धैर्य परीक्षा क्या जब धाराएँ प्रतिकूल न हो।
~महादेवी वर्मा
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