आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
यह प्रदीप जो दिख रहा है झिलमिल दूर नहीं है थक कर बैठ गये क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है
~ रामधारी सिंह 'दिनकर'
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