बस्ती-बस्ती घोर उदासी पर्वत-पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस-घिस रीता तन-चंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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