आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अंदेशे दूर दूर के नज़दीक का सफ़र कश्ती को देखता हूँ कभी बादबान को
बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को!
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