Saturday, August 29, 2020

जेहन (दिमाग, Mind) शायरी

बंद कमरे में ज़ेहन क्या बदले
घर से निकलो तो कुछ फ़ज़ा बदले
- महताब आलम


अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
इश्क़ ने दिल में रौशनी की है
- नरेश कुमार शाद

महशर में इत्तिफ़ाक़ से आया न ज़ेहन में
वर्ना तमाम उम्र तिरा नाम याद था
- अज्ञात


यूं तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर
महफ़ूज़ एक सादा वरक़ देर तक रहा
- बेकल उत्साही


पांव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं
कोई नशा है थकन का कि उतरता ही नहीं
- अब्दुल हमीद


दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पांव
जीने की काविशों में बदन हाथ से गया
- ग़ज़नफ़र

ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ
इन बड़े लोगों से मिल कर बड़ा नुक़सान हुआ
- तारिक़ क़मर


मसअले हल करते करते आदमी का ज़ेहन भी
बे-तरह उलझा हुआ इक मसअला हो जाएगा
- राणा गन्नौरी

याद ये किस की आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया
सारे ही ग़म भुला गई ज़ेहन का बोझ उतर गया
- मुज़फ़्फ़र रज़्मी


यादों की गूंज ज़ेहन से बाहर निकालिए
गुम्बद न चीख़ उठ्ठे कोई दर निकालिए
- सैफ़ ज़ुल्फ

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