Thursday, August 6, 2020

तन्हा कविता

आया तू था यहां तन्हा,
जाएगा तू यहां से तन्हा।
जोड़ी है जो तूने दौलत,
रह जाएगी ये यहां तन्हा।।

बनाए थे मनसूबे रहने के यहां
मकान बनाए पक्के तूने यहां।
मिली थी दो गज जमीन यहां
सो गया था उसमें तू तन्हा।।

बुराई भलाई की थी तूने यहां,
अच्छे काम भी तूने किए यहां
बुरे काम भी तूने किए यहां
फिर भी रह गया तन्हा यहां।

आखरी सफ़र में जाएगा तन्हा
भले ही तेरे पीछे हो सारा जहां।
काफ़िला साथ चला तेरे साथ,
पर चलता रहा तब भी तन्हा।

चारों तरफ मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर,
पर हर मुसाफ़िर जा रहा है तन्हा।
हर राह पर अब मुसाफ़िर है
पर राहे दिखती है अब तन्हा।

फैली कोरोना की महामारी यहां,
बन्द होकर रह गया तन्हा यहां।
निकल सका घर से बाहर कहीं,
तू मिल न सका किसी से यहां।।

मोहब्बत की थी जिससे यहां,
वो भी छोड़ गई है तुझे तन्हा।
इस तन्हाई में कैसे रहे जिंदा,
जो कभी न रही तुझसे तन्हा।

लिखा था जो कुछ मैंने यहां,
शायद रह रहा था मैं भी तन्हा
कलम ख़ुद पे ख़ुद चलती है,
जब बंदा होता है कभी तन्हा।

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