Sunday, August 16, 2020

मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या

मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या 
बन्द एक मुद्दत से हूं, खुल जाऊं क्या ?

आजिजी, मिन्नत, ख़ुशामद, इल्तिजा,
और मैं क्या क्या करूँ, मर जाऊं क्या ?

कल यहां मैं था जहां तुम आज हो 
मैं तुम्हारी ही तरह इतराऊं क्या? 

तेरे जलसे में तेरा परचम लिए 
सैकड़ों लाशें भी हैं गिनवाऊं क्या ?

एक पत्थर है वो मेरी राह का,
गर न ठुकराऊं, तो ठोकर खाऊं क्या?

फिर जगाया तूने सोये शेर को 
फिर वही लहजा दराज़ी ! आऊं क्या ?

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