Sunday, August 23, 2020

सच्चाइयां मालूम हुई

सच्चाइयां मालूम हुई

दर्पण धरा जब सामने,
सच्चाइयां मालूम हुईं।
ढल गईं खुशफ़हमियां,
परछाइयां मालूम हुईं।

अब तलक ढूंढ़ा किए,
दूसरों में ख़ामियां।
जब कथा अपनी गुनी,
सच्चाइयां मालूम हुईं।

हम ही हम हैं इस जहां में,
है औरों की औकात क्या।
पहाड़ के बाजू से गुजरे,
ऊंचाइयां मालूम हुईं।

ज़िंदगी के दरिया से,
बीन लूंगा मोती सब।
चार डुबकी खाईं तो,
गहराइयां मालूम हुईं।

मेला दुनिया का सजा है
रौनक है इसकी हमीं से,
उखड़ गए जब तंबू सारे,
तनहाइयां मालूम हुईं।

बिन मेरे न रह सकेगा,
तड़पेगा,आहें भरेगा।
फेर मुंह जब चल दिया वो,
रूसवाइयां मालूम हुईं।

दर्पण धरा जब सामने,
सच्चाइयां मालूम हुईं।
ढल गईं खुशफ़हमियां,
परछाइयां मालूम हुईं।

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