खामोशी पल दो पल अच्छी, लम्बी हो तो खाक जिन्दगी ।
मुस्करा की ये तन्हाइयों का पतझड़ जाने को है ।
नजदीकियों के फूल सूनी डालियों पर उतर आने को है ।
ये आंसू तो पहचान है तेरे दिल के मर्म का ।
बह जाने दे ये तो बह जाने को है ।।
मुस्करा ले जिन्दगी की फिर ये शाम न हो ।
ऐसी हसीन इश्क़ का अंजाम न हो ।
हुस्न के मयखाने में प्यासे रह गये हम,
ऐ हसीन शायर, क्या तुझपे ये इल्ज़ाम न हो ।।
अपने बिखरे हसरतों को अंजाम दे जिन्दगी ।
आखों में बसते चेहरे को नाम दे जिन्दगी ।
तेरे रोने की उम्र सदियों पहले बीत गयी ।
अपने होठों पे शास्वत मुस्कान दे जिन्दगी ।।
अधरों पर मेरे ख़्वाहिशों के मुस्कान दे जिन्दगी ।
गिर के उठ जाने वाले हौसलों की उड़ान दे जिन्दगी ।
तेरे इश्क़ के चादर में लिपटा रहूं उम्र भर ।
मुझे मेरी आशिकी का ईनाम दे जिन्दगी ।।
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