Wednesday, August 19, 2020

किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से

किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से 
बड़ी हसरत से तकती हैं 
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं 
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर 
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर 

#Gulzar

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