Monday, August 24, 2020

यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का

मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा 
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता 
- यगाना चंगेज़ी


न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर 
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा 
- बहादुर शाह ज़फ़र

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का 
यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का 
- शहरयार

किनारे ही से तूफ़ाँ का तमाशा देखने वाले 
किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता 
- जगन्नाथ आज़ाद

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