Sunday, August 16, 2020

शामें किसी को मांगती हैं आज भी

नाक़ूस से ग़रज़ है न मतलब अज़ां से है
मुझ को अगर है इश्क़ तो हिन्दोस्तां से है
- ज़फ़र अली ख़ां


मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूं मिरा एतिबार मत करना
- आसिम वास्ती


दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शामें किसी को मांगती हैं आज भी 'फ़िराक़'
गो ज़िंदगी में यूं मुझे कोई कमी नहीं
- फ़िराक़ गोरखपुरी


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