Sunday, August 30, 2020

आज कल हैं वो याद आए हुए

हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
आज कल हैं वो याद आए हुए
मैं ने रातें बहुत गुज़ारी हैं
सिर्फ़ दिल का दिया जलाए हुए

एक उसी शख़्स का नहीं मज़कूर
हम ज़माने के हैं सताए हुए
सोने आते हैं लोग बस्ती में
सारे दिन के थके थकाए हुए

मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट
नज़र आते हैं मुस्कुराए हुए
गो फ़लक पे नहीं पलक पे सही
दो सितारे हैं जगमगाए हुए

ऐ 'शुऊर' और कोई बात करो
हैं ये क़िस्से सुने सुनाए हुए.

2. ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
कुछ न कुछ तो चाहिए बाबा दवा-ए-दर्द-ए-दिल
रात को आराम से हूँ मैं न दिन को चैन से
हाए है वहशत-ए-दिल हाए हाए दर्द-ए-दिल

दर्द-ए-दिल ने तो हमें बे-हाल कर के रख दिया
काश कोई और ग़म होता बजाए दर्द-ए-दिल
उस ने हम से ख़ैरियत पूछी तो हम चुप हो गए
कोई लफ़्ज़ों में भला कैसे बताए दर्द-ए-दिल

दो बालाएँ आज कल अपनी शरीक-ए-हाल हैं
इक बलाए दर्द-ए-दुनिया इक बलाए दर्द-ए-दिल
ज़िंदगी में हर तरह के लोग मिलते हैं 'शुऊर'
आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल ना-आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल.

3. उन से तन्हाई में बात होती रही
ग़ाएबाना मुलाक़ात होती रही
हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे
ख़्वाब में ये करामात होती रही

कासा-ए-चश्म लबरेज़ होती रही
उस दरीचे से ख़ैरात होती रही
दिल भी ज़ोर-आज़माई से हारा नहीं
गरचे हर मर्तबा मात होती रही

सर बचाए रहा सब्र का साएबाँ
आसमाँ से तो बरसात होती रही
गो मोहब्बत से हम जी चुराते रहे
ज़िंदगी भर ये बद-ज़ात होती रही

शहर भर में फिराया गया क़ैस को
कूचे कूचे मुदारात होती रही
जागते और सोते रहे हम 'शुऊर'
दिन निकलता रहा रात होती रही .

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