Monday, September 30, 2019

Teasers Feb'25

समेटना है अभी हर्फ़ हर्फ़ हुस्न तिरा, 

ग़ज़ल को अपनी तिरा आईना बनाना है! 

सुकूत-ए-शाम-ए-अलम तू ही कुछ बता कि तुझे, 

कहाँ पे ख़्वाब कहाँ रतजगा बनाना है! 



आंखें में पढ़ो, और जानो, 'मेरी' रज़ा क्या है,

हर बात लफ़्ज़ों से बयान हो, तो मज़ा क्या है!


माना की आसाँ नहीं,

इश्क़ तुम से बेपनाह करना!

तुम अच्छे लगे तो ठान लिया,

खुद को तबाह करना!!



नज़र की राह में यूँ तो कई नज़ारे हैं,

तुम्हीं पे जा के जो ठहरे नज़र तो क्या कीजे.

हज़ार बार कहा है कि ‘प्यार है तुमसे’

जो तुम पे होता नहीं है असर तो क्या कीजे.



आग के पास कभी, मोम को लाकर देखूं,
हो इजाजत तो तुम्हें, हाथ लगा कर देखूँ।
दिल का मंदिर, बड़ा वीरान नज़र आता है,
सोचता हूँ इसमें तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ।।
-राहत इंदौरी


राज जो कुछ हो, इशारों में बता भी देना,
हाथ जब मुझसे मिलाना दबा भी देना।

कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नज़र में रहो,
ये सब तुम्हारे ही घर हैं, किसी भी घर में रहो।

-राहत इंडोरी

मिल रही हो तुम,
न खो रही हो तुम,
दिन ब दिन बेहद,
दिलचस्प हो रही हो तुम!

पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
हम आज तक वो चोट हैं दिल पर लिए हुए

यूं अदाएं न बिखेरिए मौसम-ए-बहार में,
सूखे दरख़्त भी खिल उठेंगे हुस्न-ए-बयार में!

मौसम-ए-इश्क़ है ये जरा,
खुश्क हो जाएगा!
ना उलझा करो हम से,
वरना इश्क़ हो जाएगा!

तेरे इश्क़ से ही मिली है मेरे वजूद को ये शोहरत,
मेरा ज़िक्र ही कहाँ था तेरी दास्ताँ से पहले ..!!
बस एक झिझक है हाल-ए-दिल सुनाने में,
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में !!

जागती रातो को,
सपनो का बहाना मिल जाए!
तुम जो मिल जाओ तो,
जीने का बहाना मिल जाए!

अच्छा खासा बैठे बैठे, गुम हो जाता हूँ,
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता, तुम हो जाता हूँ!
मेरे हिस्से में बस इतना गुमान रहने दे,
कि मैं हूँ तेरा मुझे अपनी जान रहने दे!

कभी देखेंगे ऐ जाम तुझे होठों से लगाकर,
तू मुझमें उतरता है कि मैं तुझमें उतरता हूँ।

ज़िंदगी गमों का पुलिंदा है,
ख़ुशियाँ आज कल चुनिंदा है,
कभी याद कर लिया करो इस नाचीज़ को,
ये शख्स अभी तक ज़िंदा है!

लोग कहते हैं कि प्यार में नींद उड़ जाती है,
कोई हमसे इश्क़ करता, कम्बख्त नींद बहुत आती है!

तेरे पंखुड़िओ जैसे होठों की नमी को चुरा लूँ,
तेरी ज़ुल्फों की साए में खुद को छुपा लूँ!
तेरे बदन की खुशबू में बस अब नहा लूँ,
गर फिर भी चैन ना आये, तो ये सब दुहरा लूँ!!

कोई मरहम नहीं चाहिए,
ज़ख्म मिटाने के लिए।
तेरी एक झलक ही काफ़ी है,
मेरे ठीक हो जाने के लिए!

देख कर मेरी/मेरी आँखें,
एक फकीर कहने लगा.
पलकें तुम्हारी नाज़ुक है,
ख्वाबों का वज़न कम कीजिये!

खूबसूरत गज़ल जैसा है तेरा चाँद सा चेहरा,
निगाहे शेर पढ़ती हैं जो लब इरशाद करते है।
मिलती जुलती मेरी ग़ज़लों से है सूरत  तेरी,
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे!

मिलो कभी चाय पर, फिर किस्से बुनेंगे,
तुम खामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे!

खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो भीग जाया कर।
काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों मे मुस्कुराया कर।।

वो बचपन के दिन थे,
ये जवानी की बयार।
पहले भी रुख पे तेरे तिल था,
मगर कातिल न था!


तेरे जुल्फों की आवारा लट जब गालों को चूमती है,

अंधेरे से उजाले का मिलन देख ज़मीं झूमती है! 

हुस्न तेरा एक छलकता जाम है, 

मेरा सब कुछ तुम्हारे नाम है!! 


जब जब तेरा दीद हुआ है,
अपना तो ईद हुआ है।
जब जब तेरा दीदार हुआ है,
अपना तो त्योहार हुआ है।।


छेड़ आती हैं कभी लब तो कभी रूखसारों को,
तुमने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पर चढा रखा है ।


काश तू चाँद और मैं सितारा होता,
आसमान में एक आशियाना हमारा होता।
लोग तुम्हे दूर से देखते,
नज़दीक़ से देखने का, हक़ बस हमारा होता।।


कभी साथ बैठो, तो कहूँ कि दर्द क्या है?
अब यूँ दूर से पूछोगे, तो ख़ैरियत ही कहेंगे!


मेरे दिल पे हाथ रखो,
जरा सा जुनून दो।
उदास हूँ बहुत दिनों से,
मेरे दिल को सुकून दो!

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तेरा हुस्न भी दौलत है, 

तेरा इश्क भी दौलत है! 

और जो कुछ भी मेरी दौलत है,

सब तेरी बदौलत है!! 

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ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा
इस रात की तक़दीर संवर जाए तो अच्छा

जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है
बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा


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नए लम्हें सजाने की वजह

"यादों के नशेमन में इतनी तो जगह रखना
नए लम्हें सजाने की कोई तो वजह रखना"

हमसफर को देखते हैं

न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं,
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं!

Saturday, September 28, 2019

गीता, कुरान

मैंने गीता कुरान को कभी
लड़ते नहीं देखा!
जो इनके लिए लड़ते हैं,
उन्हें कभी पढ़ते नहीं देखा!

~ अज्ञात

Friday, September 27, 2019

इश्क का आलम, अंजान, नशा, परेशान

इश्क़ का ये आलम की, हम खुद से अंजान है,
हम तो है नशें में मगर होश वाले क्यूँ परेशान है!

ज़िंदगी गर रही

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ

~ख़्वाजा मीर दर्द

अंदेशे

अंदेशे दूर दूर के नज़दीक का सफ़र
कश्ती को देखता हूँ कभी बादबान को

बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को!

Wednesday, September 25, 2019

तू नहीं तो और क्या

" तू नहीं तो जिंदगी में और क्या रह जायेगा ,
दूर तक तन्हाईयों का सिलसिला रह जायेगा "!

खोना नहीं चाहता

तुझे पाने के लिए मैं अब कुछ और खोना नहीं चाहता

अब तू भी चली जा मैं अब किसी का भी होना नहीं चाहता

तबाह किसके लिए

बस एक ज़िद, एक फ़ितूर, इस लिये, इसके लिये ??
हम तबाह भी हुये कमज़र्फ, किस लिये, किसके लिये ??

तू मिल भी जाए अगर

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं,

कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा।

आस

बेहतर दिनों की आस लगाते हुए 'ऐ दोस्त '
हम बेहतरीन दिन भी गँवाते चले गए!

दोस्त बदल जाते हैं?

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते है!

Tuesday, September 24, 2019

मंजिल दूर नहीं है

यह प्रदीप जो दिख रहा है झिलमिल दूर नहीं है
थक कर बैठ गये क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है

~ रामधारी सिंह 'दिनकर'

Monday, September 23, 2019

हसीं ख़्वाब सजाए रक्खो

अपनी आँखों में हसीं ख़्वाब सजाए रक्खो
लाख तूफ़ान उठें शमा जलाए रक्खो!

मेरी आँखों में रतजगा शब का,
तुम सहर के जानिब मुझको जगाये रक्खो!

नाचीज़ को यूँही दिल में बसाए रक्खो!
हमें अपने सीने से लगाए रक्खो!

देती है हौसला मुश्किलों से जीतने का
सीने में है जो आग उसे जलाए रक्खो!

होंठो पर हँसी आंखों में ख़्वाब सजाये रखो..
दिल मे लाख दर्द हो फिर भी छिपाये रखो..

मेरी आँखों में रतजगा शब का
तुम सहर के जानिब मुझको जगाये रक्खो

हम शायर हो गए

जबसे देखा है वो एक चेहरा ,
तब से हम घायल हो गए ,
हुई है जबसे मोहब्बत,
हम शायर हो गए!

Friday, September 20, 2019

जब धाराएँ प्रतिकूल न हो।

वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ में बिखरे शूल न हों
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या
जब धाराएँ प्रतिकूल न हो।

~महादेवी वर्मा

जिन्दा रहना है तो

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें

रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो

दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में

कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे

नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन

दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ

क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाजारी रखो!

झिंझोड़ दूँगा उसे

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे

जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का

इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे

बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन

उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे

पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज

कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को

समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे!

राहत इंदौरी

Thursday, September 19, 2019

लेकिन आग जलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए॥

-दुष्यंत कुमार

टूट जाने तलक गिरा मुझको

टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको

मेरी खुशबू भी मर न जाय कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको

एक भगवे लिबास का जादू
सब समझते हैं पारसा मुझको

अक़्ल कोई सजा़ है या ईनाम
बारहा सोचना पडा़ मुझको

हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको

कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको!

-हस्तीमल हस्ती

मेरी ताक़त न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको

आपका यूँ करीब आ जाना
मुझसे और दूर ले गया मुझको

वक़्त तो लगता है

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है,
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है!

जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है!

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है!

हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है!

-हस्तीमल हस्ती

पास उनके रहता हूँ

वो दिल ले के ख़ुश हैं मुझे ये ख़ुशी है
कि पास उन के रहता हूँ मैं दूर हो कर!

तेरा भोलापन मेरा दीवानापन

बस्ती-बस्ती घोर उदासी पर्वत-पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस-घिस रीता तन-चंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

Wednesday, September 18, 2019

पिंजरा, परिंदा

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा,
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है!

Monday, September 16, 2019

तेरी खता कुछ भी नहीं

सोचा तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
- बशीर बद्र

आधे से कुछ ज्यादा

आधे से कुछ ज्यादा हैं, पूरे से कुछ कम,
कुछ जिंदगी, कुछ ग़म, कुछ इश्क और कुछ हम!

सोने दे

दुनिया के सारे ग़म, मेरे नाम न किया कर,
ऐ रात सोने दे, यूँ तंग न किया कर!

Sunday, September 15, 2019

लम्हा, सदी

ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई!

Saturday, September 14, 2019

बेताबी, ठहरना

दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं!

Thursday, September 12, 2019

समझौता

शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं,
इतने समझौतों पर जीते हैं कि मर जाते हैं।

ख्वाब, लिपट, सजा, खता

तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं,
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं!

महताब, जागता हूँ, ख्वाब

हर एक रात को माहताब देखने के लिए,
मैं जागता हूँ, तेरा ख्वाब देखने के लिए!

न जाने शहर में किस किस से झूट बोलूँगा
मैं घर के फूलों को शादाब देखने के लिए

इसी लिए मैं किसी और का न हो जाऊँ
मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए

har ek raat ko mahtaab dekhne ke liye,
main jaagta hun tera khwab dekhne ke liye!

Wednesday, September 11, 2019

फरेब, जिस्म, जीत

फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन,
मैं  पेड़  काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा!

तालीम, रहबरी, आचरण

मुझ को नज़्म-ओ-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरण तक ले चलो!

दिखावे की दोस्ती


मोहब्बत में दिखावे की दोस्ती न मिला।
अगर गले न मिल सको तो हाथ भी न मिला।
- बशीर बद्र

ऐहतियातन, मासूम, बदनाम

मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ,
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए!
#बशीरबद्र

जहर, दवा, निगाह

वो ज़हर देता तो सब की निगाह में आ जाता
सो ये  किया कि  मुझे  वक़्त पे  दवाएँ न दीं!

वो अफसाना

वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे  इक  ख़ूब-सूरत  मोड़ दे  कर  छोड़ना  अच्छा
- साहिर लुधियानवी

खुद ही, Motivation

_ख्वाईश से नहीं गिरते फूल झोली में,_
_वक़्त की शाख को मेरे दोस्त हिलाना होगा।_
_कुछ नहीं होगा अंधेरों को बुरा कहने से,_
_अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाना होगा।।_

Tuesday, September 10, 2019

जुदाई, आसान, ख्वाब, परेशान

अब जुदाई के सफ़र को मेरे आसान करो,
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो!

चेहरे से बीमार, इश्क का इजहार, छुट्टी, इतवार

आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए,
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए!

जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें,
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये!

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे,
इश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिये!

~मुनव्वर राना

Sunday, September 8, 2019

बन्दगी, फितरत, खुदा

दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या न हो,
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो!

सुकून, बंदगी, परेशान

मिल जाता है दो पल का सुकून,
बंद आंखों की बंदगी में!
वरना परेशान कौन नहीं,
अपनी-अपनी जिन्दगी में!

इतवार

हफ्ते भर में , बिखर चुके जिस्म को,
एक इतवार ही आता है, समेटने को!

तेरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया  जल  रहा  है  हवा  चल  रही  है

सुकूँ  ही  सुकूँ है  ख़ुशी ही  ख़ुशी  है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी  है

- ख़ुमार बाराबंकवी

उसूल, टकराना जरूरी है

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है,
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है!

Saturday, September 7, 2019

बीत गयी सो बात गई

जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई।

~ हरिवंशराय बच्चन

विपत्ति, कायर, दहलाना, शूरमा, विचलित, धीरज, विघ्न

सच है विपत्ति जब आती है
कायर को ही दहलाती है!

सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।

~ रामधारी सिंह 'दिनकर'

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

Thursday, September 5, 2019

ख़फ़ा, जुदा, वफा, बेवफा

आग दिल में लगी जब वो खफ़ा हुए;
महसूस हुआ तब, जब वो जुदा हुए;
करके वफ़ा कुछ दे ना सके वो;
पर बहुत कुछ दे गए जब वो बेवफ़ा हुए!

सुखा गुलाब, बिछड़े ख्वाब, आब

कभी क़िताबों में सूखे गुलाब की तरह,
कभी ज़िन्दगी में बिछड़े ख़्वाब की तरह,
वो मिलते रहे हमसे ,
आंखों से बहते आब की तरह!

बगैर, सूखा गुलाब, फेंका

तेरे बगैर किसी और को देखा नहीं मैंने,
सूख गया तेरा गुलाब , लेकिन फेंका नहीं मैंने!

ख्वाहिश, काफिला , अजीब, अक्सर, रास्ता

ख्वाहिशों का काफिला भी बड़ा अजीब है,
अक्सर वहीं से गुज़रता है जहां रास्ता ना हो!

Tuesday, September 3, 2019

बेवफा, इन्तजार

जो हुक्म देता है वो इंतजार भी करता है
ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है
गर तू बेवफा है तो ले एक बुरी खबर सुन
मेरा इंतजार दूसरा भी करता है!

वो नहीं आता

चाहिये जब वो तब नहीं आता,
सबके हिस्से में सब नहीं आता!

कैसे बेवक्त आ गए हो तुम!
इश्क! तुम को अदब नहीं आता?

झूठ़ बोले, तो जीत ले उनको!
हमको ऐसा कसब नहीं आता!

शायरी दे के मुझको जाता है,
दर्द ये बेसबब नहीं आता!

अश्क मत ढूंढिए इन आंखों में,
आता था पहले , अब नहीं आता!

करीब, शायद, फासले, गलतफहमी

क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाए,
कि फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं!

इन्तजार, बेवफा

लम्हा लम्हा शुमार कौन करे,
उम्र भर इंतिज़ार कौन करे!

कोई वादा भी तो वफ़ा न हुआ,
बे-वफ़ाओं से प्यार कौन करे!

मुसाफिर, ऐतबार

मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार न कर!

वहशी

वहशियों के सींखचे में
लड़की बनी कबाब
खींसे निपोर कहे कानून
दुष्कर्मी नाबालिग है जनाब।

10 Beautiful Poems By Dushyant Kumar

10 Beautiful Poems By Dushyant Kumar


#1: कुंठा – दुष्यंत कुमार


मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों-सी
ताने-बाने बुनती,
तड़प तड़पकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ’ वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती!


बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा।

 

#2: चीथड़े में हिन्दुस्तान – दुष्यंत कुमार


एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है।


ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए,
यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है।

एक बूढा आदमी है मुल्क में या यों कहो,
इस अँधेरी कोठारी में एक रौशनदान है।

मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के कदम,
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है।

इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब की सदके आपके
जब से आज़ादी मिली है, मुल्क में रमजान है।

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला की हिन्दुस्तान है।

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ,
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है।

#3: तुमको निहरता हूँ सुबह से ऋतम्बरा – दुष्यंत कुमार


तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा
अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा


ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब
फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा—डरा

पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है
मेरी नज़र में अब भी चमन है हरा—भरा

लम्बी सुरंग-से है तेरी ज़िन्दगी तो बोल
मैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा

माथे पे हाथ रख के बहुत सोचते हो तुम
गंगा क़सम बताओ हमें कया है माजरा

 

#4: दो पोज़ – दुष्यंत कुमार

सद्यस्नात तुम
जब आती हो
मुख कुन्तलों से ढँका रहता है
बहुत बुरे लगते हैं वे क्षण जब
राहू से चाँद ग्रसा रहता है ।

पर जब तुम
केश झटक देती हो अनायास
तारों-सी बूँदें
बिखर जाती हैं आसपास
मुक्त हो जाता है चाँद
तब बहुत भला लगता है ।

#5: अपनी प्रेमिका से – दुष्यंत कुमार

मुझे स्वीकार हैं वे हवाएँ भी
जो तुम्हें शीत देतीं
और मुझे जलाती हैं
किन्तु
इन हवाओं को यह पता नहीं है
मुझमें ज्वालामुखी है
तुममें शीत का हिमालय है
फूटा हूँ अनेक बार मैं,
पर तुम कभी नहीं पिघली हो,
अनेक अवसरों पर मेरी आकृतियाँ बदलीं
पर तुम्हारे माथे की शिकनें वैसी ही रहीं
तनी हुई.
तुम्हें ज़रूरत है उस हवा की
जो गर्म हो
और मुझे उसकी जो ठण्डी!
फिर भी मुझे स्वीकार है यह परिस्थिति
जो दुखाती है
फिर भी स्वागत है हर उस सीढ़ी का
जो मुझे नीचे, तुम्हें उपर ले जाती है
काश! इन हवाओं को यह सब पता होता।
तुम जो चारों ओर
बर्फ़ की ऊँचाइयाँ खड़ी किए बैठी हो
(लीन… समाधिस्थ)
भ्रम में हो।
अहम् है मुझमें भी
चारों ओर मैं भी दीवारें उठा सकता हूँ
लेकिन क्यों?
मुझे मालूम है
दीवारों को
मेरी आँच जा छुएगी कभी
और बर्फ़ पिघलेगी
पिघलेगी!
मैंने देखा है
(तुमने भी अनुभव किया होगा)
मैदानों में बहते हुए उन शान्त निर्झरों को
जो कभी बर्फ़ के बड़े-बड़े पर्वत थे
लेकिन जिन्हें सूरज की गर्मी समतल पर ले आई.
देखो ना!
मुझमें ही डूबा था सूर्य कभी,
सूर्योदय मुझमें ही होना है,
मेरी किरणों से भी बर्फ़ को पिघलना है,
इसी लिए कहता हूँ-
अकुलाती छाती से सट जाओ,
क्योंकि हमें मिलना है।

#6: फिर कर लेने दो प्यार प्रिये – दुष्यंत कुमार

अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं

तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये ..

इच्छाएँ मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी

खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..

#7: चीथड़े में हिन्दुस्तान – दुष्यंत कुमार

एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है।

ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए,
यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है।

एक बूढा आदमी है मुल्क में या यों कहो,
इस अँधेरी कोठारी में एक रौशनदान है।

मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के कदम,
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है।

इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब की सदके आपके
जब से आज़ादी मिली है, मुल्क में रमजान है।

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला की हिन्दुस्तान है।

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ,
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है।

#8: आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख :- दुष्यंत कुमार


आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।


#9: मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ :- दुष्यंत कुमार


मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ।
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल -सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ एतराज़ होता है
मैं अगर रोशनी में आता हूँ
एक बाजू उखड़ गया जब से
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने करीब पाता हूँ


कौन ये फासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ

#10: इस नदी की धार में – दुष्यंत कुमार


इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है


एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है


एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है

निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है

Monday, September 2, 2019

यही है जिन्दगी

yahi hai zindagi kuchh khwab chand ummeedein
inhin khilaunon se tum bhi bahal sako to chalo

दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार के तीन शे'र –

1)
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ

2)
थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ निकलने दो
कल देखोगी कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे

3)
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

Sunday, September 1, 2019

तरस, खिली धूप, बंधन, उकसाता

तरस रहा है मन, फूलों की नई गंध, पाने को,
खिली धूप में, खुली हवा में, गाने मुस्काने को!
तुम अपने जिस तिमिरपाश में मुझको क़ैद किए हो,
वह बंधन ही, उकसाता है बाहर आ जाने को।

~ दुष्यंत कुमार