आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ये दिसम्बर तो बातों का मौसम था, दुआ करो कि जनवरी बांहोँ का मौसम हो!
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