इस पहर जो भी मिला फ़िर वो उस पहर न मिला,
यानी जो शाम मिला था वो फ़िर सहर न मिला।
उम्र कहने को हम उम्रों में गुज़ारी लेकिन,
एक भी दोस्त उम्र भर का उम्र भर न मिला।।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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