आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कश्तियाँ सबकी किनारे पे पहुँच जाती हैं, नाखुदा जिनका नहीं उनका ख़ुदा होता है।
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