मिली हैं रूहें तो, रस्मों की बंदिशें क्या हैं,
यह जिस्म तो हो जाना है ख़ाक फिर रंजिशें क्या हैं।
है छोटी सी ज़िन्दगी, तकरारें किस लिए,
रहो एक दूसरे के दिलों में ये दीवारें किस लिए।।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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