आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
खुद की समझदारी ही अहमियत रखती है साहब, वरना अर्जुन और दुर्योधन का गुरू तो एकही था।
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