आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हवाओं की भी अपनी अजब सियासतें हैं ऐ दोस्त, कहीं बुझी राख भड़का दे, तो कहीं जलते चिराग बुझा दे।
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