Thursday, April 20, 2023

विदा के बाद प्रतीक्षा


परदे हटाकर करीने से

रोशनदान खोलकर 
कमरे का फर्नीचर सजाकर 
और स्वागत के शब्दों को तोलकर 
टक टकी बाँधकर बाहर देखता हूँ 
और देखता रहता हूँ मैं। 

सड़कों पर धूप चिलचिलाती है 
चिड़िया तक दिखायी नही देती 
पिघले तारकोल में 
हवा तक चिपक जाती है बहती बहती, 
किन्तु इस गर्मी के विषय में किसी से 
एक शब्द नही कहता हूँ मैं। 

सिर्फ़ कल्पनाओं से 
सूखी और बंजर ज़मीन को खरोंचता हूँ 
जन्म लिया करता है जो ऐसे हालात में 
उनके बारे में सोचता हूँ 
कितनी अजीब बात है कि आज भी 
प्रतीक्षा सहता हूँ।



दुष्यंत कुमार

No comments: