Tuesday, April 11, 2023

मुझ में कोई शख़्स मर गया है

रुकने का समय गुज़र गया है

जाना तिरा अब ठहर गया है 

रुख़्सत की घड़ी खड़ी है सर पर 
दिल कोई दो-नीम कर गया है 

मातम की फ़ज़ा है शहर-ए-दिल में 
मुझ में कोई शख़्स मर गया है 

बुझने को है फिर से चश्म-ए-नर्गिस 
फिर ख़्वाब-ए-सबा बिखर गया है 

बस एक निगाह की थी उस ने 
सारा चेहरा निखर गया है 

परवीन शाकिर


No comments: