Saturday, April 8, 2023

अधूरे हैं हम तुम बिन

धरती बिन आकाश के

बाती बिना प्रकाश के 
बदली नीर बिना जैसे 
फाग अबीर बिना वैसे 
आधे सब एक दूजे बिन 
वैसे ही अधूरे हैं हम तुम बिन 

अधरों पर बुझी हँसी क्यों है 
आँखें इतनी तरसी क्यों हैं 
सावन बैरी मोरा बन बैठा 
घर आँगन भी रूठा ऐंठा 
प्यासा ज्यों पपीहा स्वाति बिन 
वैसे ही अधूरे हैं हम तुम बिन 

बन प्रेम दीवानी बाट निहारूँ 
पलकन से नित द्वार बुहारूँ 
कौन घड़ी लौटें चितवन सुख 
कौन घड़ी हर लें विरहा दुख 
ज्यों सावन आधा बरखा बिन 
वैसे ही अधूरे हैं हम तुम बिन 

मिलन संदेसा कोयल लावे 
बेला शुभ घर आँगन आवे 
सोलह सब श्रृंगार करूँ मैं 
धरा गगन रंग प्रीत रचूं मैं 
भोर अधूरी ज्यों सविता बिन 
वैसे ही अधूरे हैं हम तुम बिन 

प्रीत अल्पना द्वार सजाऊँ 
पिय पिय धुन दिन रैन मैं गाऊँ 
कण कण अनुरागी हो जाये 
क्षण क्षण हिमपागी हो जाये 
रहे अधूरा न कोई तन मन 
पूर्ण सकल ये जग हो जाये 

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