Monday, April 10, 2023

कहाँ है शहर में अब कोई ज़िंदगी की तरफ

कोई किसी की तरफ़ है कोई किसी की तरफ़

कहाँ है शहर में अब कोई ज़िंदगी की तरफ़ 

सभी की नज़रों में ग़ाएब था जो वो हाज़िर था 
किसी ने रुक के नहीं देखा आदमी की तरफ़ 

तमाम शहर की शमएँ उसी से रौशन थीं 
कभी उजाला बहुत था किसी गली की तरफ़ 

कहीं की भूक हो हर खेत उस का अपना है 
कहीं की प्यास हो जाएगी वो नदी की तरफ़ 

न निकले ख़ैर से अल्लामा क़ौल से बाहर 
'यगाना' टूट गए जब चले ख़ुदी की तरफ़

निदा फ़ाजली




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