Sunday, April 9, 2023

सवाल घर नहीं बुनियाद पर उठाया है

सवाल घर नहीं बुनियाद पर उठाया है,

हमारे पाँव की मिट्टी ने सर उठाया है


हमेशा सर पे रही इक चटान रिश्तों की 
ये बोझ वो है जिसे उम्र-भर उठाया है 

मिरी ग़ुलैल के पत्थर का कार-नामा था 
मगर ये कौन है जिस ने समर उठाया है 

यही ज़मीं में दबाएगा एक दिन हम को 
ये आसमान जिसे दोश पर उठाया है 

बुलंदियों को पता चल गया कि फिर मैं ने 
हवा का टूटा हुआ एक पर उठाया है 

महा-बली से बग़ावत बहुत ज़रूरी है 
क़दम ये हम ने समझ सोच कर उठाया है

राहत indori 

No comments: