आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कोई यूं ही खामोश नहीं होता,
मेरी ख़ामोशी भी दर्दों से लिपटी दास्ताँ है। जिसे कोई पढ़ के भी पढ़ ना सका, वो जिंदगी के पन्नों में सिमटी दास्ताँ है।
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