मुझसे रोज मिलती, फिजाओं से पूछो।
मेरे दर्द की कहानी हवाओं से पूछो।
मुझसे रोज मिलती ...
बेकुसूर हो के भी बहती हैं,
ये सारी सारी रात तड़पती हैं।
कभी होठों पर मुस्कान सजे,
उस मुस्कान की राह तकती हैं।
अश्कों को समेटे रहती, आँखों से पूछो।
मेरे दर्द की कहानी हवाओं से पूछो।
मुझसे रोज मिलती ........
गम-ए-दर्द की काली घटायें छाई हैं,
जब से घर बदल के आये हैं।
बाबुल का आंगन, फिजाओं की रंगत,
वो मुस्कुराते लम्हे ना पाये हैं।
मेरी बदहाली इन घटाओं से पूछो।
मेरे दर्द की कहानी हवाओं से पूछो।
मुझसे रोज मिलती ........
दो हिस्सों में बटा दिल करके वफ़ा,
एक रोया मेरे लिए, दूजे ने की खता।
रब्ब से दुआ उसकी सलामत-ए-फ़िक्र,
जिसने दो हिस्सों में बटने की दी सजा।
मेरे दिल का हाल उन सजाओं से पूछो।
मेरे दर्द की कहानी हवाओं से पूछो।
मुझसे रोज मिलती ........
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