Monday, April 24, 2023

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा

अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
 
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
 

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
 

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा
 

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा

वसीम बरेलवी

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