रंग उनके गुलाल का ताउम्र उतरता नहीं.....
इश़्क में खेलकर होली देखे कोई....
बदन कोरा ही रहे और रूह रंग दे,
रंगरेज मेरे कोई ऐसा रंग हो तो दे।
रोज़ ख़्वाबों में नए रंग भरा करता था
कौन था जो मिरी आँखों में रहा करता था
उँगलियाँ काट के वो अपने लहू से अक्सर
फूल पत्तों पे मिरा नाम लिखा करता था
तेरी तस्वीर में वो रंग भरा है मैंने कि
लोग देखेंगे तूझे और पूछेंगे मुझे
मौसम ए होली हैं दिन आये हैं रंग और राग के ,
हमसे तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के ..
ख़िज़ाँ का रंग दरख़्तों पे आ के बैठ गया
मैं तिलमिला के उठा फड़फड़ा के बैठ गया
पुराने यार भी आपस में अब नहीं मिलते
न जाने कौन कहाँ दिल लगा के बैठ गया
फरेब ने फीके कर दिये दिल के आशियाने के रंग
चढ़ने लगे हैं मुझ पर भी अब जमाने के रंग
लगता है तुम भी उसी से दिल तुड़वा के आए हो
तेरे चेहरे पे हैं मेरी ही तरह मात खाने के रंग
सामने वाले मंडप में उस बेवफा की शादी है
उसी की तरह बदल रहे हैं उसके शामियाने के रंग
यह रंग भी क्या रंग लाया,
तुझको जो ना संग लाया।
उनकी फितरतों से वाक़िफ़ हुए तो पता चला
गिरगिट तो बेचारा यू ही बदनाम है रंग बदलने मे
रंग दुनिया ने दिखाया है, निराला देखूँ
है अंधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ
आईना रख दे मेरे सामने आखिर
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ।
हर रंग को नूर दिया तेरे रुख़सार ने,
रंग ए जर्द लिया तुझसे ही बहार ने।
खि़ज़ाँ ने, जो छीना है रंग ए चमन,
सब्ज़ रंग, मिल जाए तेरे दीदार से।
रूप से ना रंग से ना नाम से...
जांचिएगा मुझको मेरे काम से
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