आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते, कहाँ मोड़ था उसे भूल जा,
जो मिल गया उसे याद रख, जो नहीं मिला उसे भूल जा।
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