मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान
उस जैसा तो दूसरा मिलना था दुश्वार
लेकिन उस की खोज में फैल गया संसार
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव
वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव
नैनों में था रास्ता हृदय में था गाँव
हुई न पूरी यात्रा छलनी हो गए पाँव
मैं भी तू भी यात्री चलती रुकती रेल
अपने अपने गाँव तक सब का सब से मेल
चिड़िया ने उड़ कर कहा मेरा है आकाश
बोला शिकरा डाल से यूँही होता काश
बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान
सब की पूजा एक सी अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाए मौलवी कोयल गाए गीत
वो सूफ़ी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान
जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान
निदा फ़ाज़ली
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