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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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हर अदा अच्छी, ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
माझी ने डुबोया है लहरों ने उछाला है, गर्दिश के समु...
हर अदा अच्छी, ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
झूठों ने झूठों से कहा कि सच बोलो
हम ना बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ
पानी के बाद प्रेम ही है
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो!
मलाल ये है कि, जगह तुम्हारे दिल में पा न सके!
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया!
इश्क़ करना ही है तो वतन से करें
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
अजब हालत हमारी हो गई है
कभी पहले जैसे मिला न हो!
कभी पहले जैसे मिला न हो!
मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा, तेरी ख़ता कुछ भी नहीं!
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे
तू ख़िज़ाँ का फूल है मुस्करा,
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
मुझ से ख़फ़ा तुम तो नहीं हो
मेरी पलकों पर ये आँसू, प्यार की तौहीन थे
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
हम ने उस को इतना देखा जितना देखा जा सकता था
ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए
क़िस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा'
अजीब शख्स है अपना भी पराया भी
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
माफ़ करना ऐ ज़िंदगी,
दिखाई देते हैं सब फ़ासले नज़र के मुझे!
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
..बात ना होना भी...चुभता है बहुत.!!!-
दुपट्टे के बिना किसी की भी बेटी अच्छी नहीं लगती!
किस बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है
मेरी तमाम 'उलझने' सुलझ जाएंगी..
अपनी निगाहाेसे पुछ ले, क्या ओ कसुरवार नही!
तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी
रिफाकत - साथ Shayari
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोगरो - रो के ब...
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी!
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला!
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
दूसरी बारिश पर मिट्टी भला महकी है कभी ?
दाग रखें अपने पास और रोशनी बाँट दें!
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
हम ज़िन्दा थे,हम ज़िन्दा हैं,हम ज़िन्दा रहेंगे
इक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया!
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
तुम्हारे मुँह में किसी की ज़बाँ हो ठीक नहीं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
रोने वाले तुझे रोने का सलीका ही नहीं
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
बस तेरे मुस्कुराने से काम चलता है!
ज़रा ज़रा सी शिकायत पे रूठ जाते हैं
मुझे अब तेरी बेरुखी़ की आदत सी हो गई है
खैर जो हुआ सो हुआ बातों को भुलाते हैं
मनाने रूठ जाने का चलन अच्छा लगा हमको
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर!
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए!
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर!
बेवजह रुठ जाना तेरी आदत ताे नही
जैसें हमसफ़र से राब्ता़ नहीं!
अच्छे हैं बहाने तेरे रूठने मनाने के
तुम्हारे सभी नाज़ उठाएंगे हम, रूठोगे तुम और मनाएंग...
मैं ख़्वाहिश बन जाऊँ, और तू रूह की तलब
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया!
जीने के लिए मरना ये कैसी सआदत है
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने
Kaifi Azmi Shayari
गोरियों कालियों ने मार दिया
तू चुप रहे तो ज्यादा सुनाई देता है
माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
वो क्या कहना चाहते हैं, हम बखूबी समझ जाते हैं
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है!
अब मैं कोई शख़्स नहीं
सवाल आ गए आँखों से छिन के होंटों पर
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है!
अब सो न सकुंगा ख़्वाबों में ना आना
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जब इश्क़ देख लेंगे तो सर पर बिठाएँगे
जब उस की तस्वीर बनाया करता था
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई!
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
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Saturday, January 4, 2020
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले
- मिर्ज़ा अज़ीम बेग़
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