मेरे अरमाँ खामोश हैं मग़र अश्क़ शोर करते हैं
ख़ामोशी ओढ़े बैठी मैं और लहज़े जोर करते हैं
मेरे अश्क़ उसे बर्दाश्त नहीं क्या उसका इश्क़ हैं
सच में उसके लफ़्ज़ दिल पर असर घोर करते हैं
कितनी बार कहा हैं मेरी जान तू यूँ रोया ना कर
क्या कहें के तेरे अश्क़ कितना कमजोर करते हैं
पल-पल की घुटन,ठहरा दर्द,मरने पे आमादा मैं
ये बीते लम्हें मेरे जीना क्यूँ इतना कठोर करते हैं
कमरे की दिवारे बोल पड़ी हम ढह जाएंगी यारा
तेरे रात के अश्क़ हम पर असर घनघोर करते हैं
कृष्णा ये जो धीमा-धीमा रोज का दर्द हैं ज़हर हैं
मौत के दर पर हर रोज थोड़ी-थोड़ी ठोर करते हैं...
- कृष्णा शर्मा
Wednesday, November 27, 2024
मेरे अरमाँ खामोश हैं मग़र अश्क़ शोर करते हैं
Saturday, November 23, 2024
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे
हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे
थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफ़िर आएँगे
उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आए तो यहाँ शँख सीपियाँ उठाने आएँगे
फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आएँगे
रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढ़े तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे
हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गए
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएँगे
हम इतिहास नहीं रच पाए इस पीड़ा में रहते हैं
अब जो धारायें पकड़ेंगे इसी मुहाने आएँगे
Dushyant Kumar
Friday, November 22, 2024
मैं तेरा हूँ मुझे अपना मानो तुम
तकदीर में लिखा है और क्या कहूँ
इतना दर्द सह लिया है और कितना सहूँ,
मेरी आवाज सुन मेरी फरियाद सुन
अब तुमसे दूर कैसे रहूँ।
सोचो समझो और जानो तुम
मैं तेरा हूँ मुझे अपना मानो तुम,
पुरानी बातों को तुम छोड़ दो
रुकावट की जंजीरों को तुम तोड़ दो
मुझे नही पता क्या होगा कल
फिर आज कैसे कहूँ ।
तस्वीर तेरी जो थी वो खो गयी
धीरे - धीरे तेरी यादें मुझसे दूर हो गयी
तुमको न देखूँ तो ऐसा लगता है
जैसे आंखों की धूमिल हो गयी
ऐसा नहीं कि कुछ न कहूँ पर
तुम बिन कुछ कैसे कहूँ।
Sunday, November 17, 2024
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं
जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं
अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं
टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं
सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं
चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँ
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Tuesday, November 12, 2024
शायद तुमको नहीं पता होगा
शायद तुमको भी नहीं पता होगा
कि तुम मेरे लिए क्या हो
एक खुशनुमा एहसास
बहुत खास
और एक प्यारी सी सज़ा हो
सज़ा भी वो जिसे पाने के लिए
हर गुनाह कबूल है
तुम एक प्यारी सी दुआ हो
मेरे हर मर्ज की दवा हो
मेरी बेचैनियों का
चैन हो तुम
मेरी बेसब्री का
सब्र हो तुम
मेरा उदास होना लाजमी है
अगर तुमसे बात ना हो
चाहे कुछ पल के लिए ही सही
गर तुमसे मुलाकात ना हो
दिन हो रात हो
ख्याल बस तुम्हारा ही होता है
जवाब एक नहीं हजारों होंगे
पर हर बार सवाल तुम्हारा ही होता है
मुझे साथ चाहिए तेरा
पर सात जन्मों का नहीं
हर जन्म का
हर दिन का
हर पल का
मैं वादा करता हूं तुझसे
बे इंतेहा मोहब्बत करूंगा तुझसे
कभी रोने नहीं दूंगा
तुझे कभी खोने नहीं दूंगा
तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी
एक प्यारा सा एहसास बनकर
बहुत खास बनकर....
Friday, November 8, 2024
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
चलती राहों में यूँही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
सुदर्शन फ़ाकिर
Wednesday, October 30, 2024
दीवाली की रात आई है तुम दीप जलाए बैठी हो
दीवाली की रात आई है तुम दीप जलाए बैठी हो
मासूम उमंगों को अपने सीने से लगाए बैठी हो
तस्वीर को मेरी फूलों की ख़ुशबू में बसाए बैठी हो
आँखों के नशीले डोरों पर काजल को बिठाए बैठी हो
मैं दूर कहीं तुम से बैठा इक दीप की जानिब तकता हूँ
इक बज़्म सजाए रक्खी है इक दर्द जगाए रखता हूँ
ख़ामोशी मेरी साथी है और देखने वाला कोई नहीं
ऐ काश कहीं से आ जाते जीने का बहाना कोई नहीं
वसीम बरेलवी
Monday, October 21, 2024
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को,
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को ।
पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है,
इस अहद की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को ।
मुक्तिकामी चेतना, अभ्यर्थना इतिहास की ।
ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की ।
आप कहते हैं जिसे इस देश का स्वर्णिम अतीत,
वो कहानी है महज़ प्रतिशोध की, संत्रास की ।
यक्ष-प्रश्नों में उलझकर रह गई बूढ़ी सदी,
ये प्रतीक्षा की घड़ी है क्या हमारी प्यास की ।
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आख़िर क्या दिया,
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास की ।
याद रखिए यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार,
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की ।
अदम गोंडवी
तेरी चाहत का बस इक इशारा सही
तेरी चाहत का, बस इक, इशारा सही।
डूबते को तो, तिनके का, सहारा सही।।
प्रीत को, इक बार, बयां करना जरूर।
रोक लेना न तुम दिल में दोबारा कहीं।।
यूँ ही नहीं मिलते है, धरा पर कोई।
खुदा को नहीं, जब तक, गवारा सही।।
फूल खिलने की, भी तो, वजह है यहाँ।
जरा समझो, कुदरत का, नजारा सही।।
तेरी दुनिया के, होंगे, कई तलबगार।
मुझ सा न होगा, लेकिन, तुम्हारा सही।।
सोचता हूँ प्यार करना चाहिए
रंग इस मौसम में भरना चाहिए
सोचती हूँ प्यार करना चाहिए
ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते
रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए
दोस्ती से तजरबा ये हो गया
दुश्मनों से प्यार करना चाहिए
प्यार का इक़रार दिल में हो मगर
कोई पूछे तो मुकरना चाहिए
अंजुम रहबर
Saturday, October 19, 2024
ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
हाँ लुत्फ़ जब है पा के भी ढूँढ़ा करे कोईतुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया
किस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई
दुनिया लरज़ गई दिल-ए-हिरमाँ-नसीब की
इस तरह साज़-ए-ऐश न छेड़ा करे कोई
मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई
रंगीनी-ए-नक़ाब में गुम हो गई नज़र
क्या बे-हिजाबियों का तक़ाज़ा करे कोई
या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो
या फिर मिरी निगाह से देखा करे कोई
होती है इस में हुस्न की तौहीन ऐ 'मजाज़'
इतना न अहल-ए-इश्क़ को रुस्वा करे कोई
मजाज़ लखनवी
कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए
कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए
तुम्हारा हिज्र बहुत दूर से गुज़र जाए
उदासियों से भरी कच्ची उम्र की ये नस्ल
जो शायरी न करे तो दुखों से मर जाए
पचास लोगों से वो रोज़ मिलती है और मैं
किसी को देख लूँ तो उस का मुँह उतर जाए
घटा छटे तो दिखे चाँद भी सितारे भी
जो तुम हटो तो किसी और पर नज़र जाए
हज़ार साल में तय्यार होने वाला मर्द
उस एक गोद में सर रखते ही बिखर जाए
मैं उस बदन से सभी पैरहन उतारूँ और
अंधेरा जिस्म पे कपड़े का काम कर जाए
मेरी हवस को कोई दूसरा मयस्सर हो
तुम्हारा हुस्न किसी और से सँवर जाए
कुशल दौनेरिया
Friday, October 11, 2024
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया
मार डाला मरने वाले को कि अच्छा कर दिया
जब तिरा ज़िक्र आ गया हम दफ़अतन चुप हो गए
वो छुपाया राज़-ए-दिल हम ने कि इफ़शा कर दिया
किस क़दर बे-ज़ार था दिल मुझ से ज़ब्त-ए-शौक़ पर
जब कहा दिल का किया ज़ालिम ने रुस्वा कर दिया
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया
दर्दमंदान-ए-अज़ल पर इश्क़ का एहसाँ नहीं
दर्द याँ दिल से गया कब था कि पैदा कर दिया
दिल को पहलू से निकल जाने की फिर रट लग गई
फिर किसी ने आँखों आँखों में तक़ाज़ा कर दिया
रंज पाया दिल दिया सच है मगर ये तो कहो
क्या किसी ने दे के पाया किस ने क्या पा कर दिया
बच रहा था एक आँसू-दार-ओ-गीर-ए-ज़ब्त से
जोशिश-ए-ग़म ने फिर इस क़तरे को दरिया कर दिया
'फ़ानी'-ए-महजूर था आज आरज़ू-मंद-ए-अजल
आप ने आ कर पशीमान-ए-तमन्ना कर दिया
फ़ानी बदायूंनी
Thursday, October 10, 2024
पुर-ख़ार राह में कोई साया नहीं मिला
पुर-ख़ार राह में कोई साया नहीं मिला
ताउम्र ज़िन्दगी में सहारा नहीं मिला
दरिया मिला कहीं न कहीं आबशार ही
मंजर कहीं सफ़र में सुहाना नहीं मिला
हमको तलाश थी कि कोई मरहला मिले
लेकिन जहां में कोई ठिकाना नहीं मिला
दावा तो ज़ोर शोर से उसने किया मगर
पैकर मुझे जनाब वो सच्चा नहीं मिला
हसरत से ताकता था थीं नज़रें टिकी हुईं
मासूम को मगर वो खिलौना नहीं मिला
जन्नत कहा जिसे वो है नायाब वाक़ि'ई
ढूंढा बहुत मगर मुझे रस्ता नहीं मिला
दावे किए गए हैं सियासत में बारहा
ईमान पर मगर कोई चलता नहीं मिला
उम्मीद बरकरार है छोड़ी नहीं अभी
साबित करूं वजूद वो मौका नहीं मिला
मुद्दत से है तलाश कोई हमसफ़र मिले
त्यागी मगर जहान में अपना नहीं मिला
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए
चाँदनी रातों में इक इक फूल को
बे-ख़ुदी कहती है सज्दा कीजिए
जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए
इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए
पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए
हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए
आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए
कहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हम को न रुस्वा कीजिए
अख़्तर शीरानी
तेरी यादों से सींच लेते हैं
सूखते ही ख़्याल की डाली,
तेरी यादों से सींच लेते हैं ।
बाकी रह जाए याद में बाकी,
अपनी तस्वीर खींच लेते हैं ।
बहुत पता है तुम्हें छोड़ जाना आता है
किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है
मिरे अज़ीज़ को हर इक बहाना आता है
ज़रा सा मिल के दिखाओ कि ऐसे मिलते हैं
बहुत पता है तुम्हें छोड़ जाना आता है
सितारे देख के जलते हैं आँखें मलते हैं
इक आदमी लिए शम-ए-फ़साना आता है
अभी जज़ीरे पे हम तुम नए नए तो हैं दोस्त
डरो नहीं मुझे सब कुछ बनाना आता है
यहाँ चराग़ से आगे चराग़ जलता नहीं
फ़क़त घराने के पीछे घराना आता है
ये बात चलती है सीना-ब-सीना चलती है
वो साथ आता है शाना-ब-शाना आता है
गुलाब सिनेमा से पहले चाँद बाग़ के बा'द
उतर पड़ूँगा जहाँ कारख़ाना आता है
ये कह के उस ने सेमेस्टर ब्रेक कर डाला
सुना था आप को लिखना लिखाना आता है
ज़माने हो गए दरिया तो कह गया था मुझे
बस एक मौज को कर के रवाना आता है
छलक न जाए मिरा रंज मेरी आँखों से
तुम्हें तो अपनी ख़ुशी को छुपाना आना है
वो रोज़ भर के ख़लाई जहाज़ उड़ाते फिरें
हमें भी रज के तमस्ख़ुर उड़ाना आता है
पचास मील है ख़ुश्की से बहरिया-टाउन
बस एक घंटे में अच्छा ज़माना आता है
ब्रेक-डांस सिखाया है नाव ने दिल को
हवा का गीत समुंदर को गाना आता है
मुझे तो ख़ैर ज़मीं की ज़बाँ नहीं आती
तुम्हें मिर्रीख़ का क़ौमी तराना आता है
इदरीस बाबर
Tuesday, October 8, 2024
करीब से देख , मेरी दास्तां भी अजीब है बहुत
करीब से देख , मेरी दास्तां भी अजीब है बहुत।
दर्द जो करीब था मेरे,आज भी करीब है बहुत।।
वक्त बदला तो , ना जाने क्या-क्या बदल गया।
जो बा-नसीब थे कल,आज बदनसीब है बहुत।।
Friday, October 4, 2024
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
एक गोशा है ये दुनिया इसी वीराने का
इक मुअ'म्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
हुस्न है ज़ात मिरी इश्क़ सिफ़त है मेरी
हूँ तो मैं शम्अ मगर भेस है परवाने का
मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म ये है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़्साने का
ज़िंदगी भी तो पशेमाँ है यहाँ ला के मुझे
ढूँढ़ती है कोई हीला मिरे मर जाने का
तुम ने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो न तमाशा मिरे ग़म-ख़ाने का
अब इसे दार पे ले जा के सुला दे साक़ी
यूँ बहकना नहीं अच्छा तिरे मस्ताने का
दिल से पहुँची तो हैं आँखों में लहू की बूँदें
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का
हड्डियाँ हैं कई लिपटी हुई ज़ंजीरों में
लिए जाते हैं जनाज़ा तिरे दीवाने का
वहदत-ए-हुस्न के जल्वों की ये कसरत ऐ इश्क़
दिल के हर ज़र्रे में आलम है परी-ख़ाने का
चश्म-ए-साक़ी असर-ए-मय से नहीं है गुल-रंग
दिल मिरे ख़ून से लबरेज़ है पैमाने का
लौह दिल को ग़म-ए-उल्फ़त को क़लम कहते हैं
कुन है अंदाज़-ए-रक़म हुस्न के अफ़्साने का
हम ने छानी हैं बहुत दैर ओ हरम की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तिरे दीवाने का
किस की आँखें दम-ए-आख़िर मुझे याद आई हैं
दिल मुरक़्क़ा' है छलकते हुए पैमाने का
कहते हैं क्या ही मज़े का है फ़साना 'फ़ानी'
आप की जान से दूर आप के मर जाने का
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
फ़ानी बदायूंनी
शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत
शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत
मरसिए ने दिल के मेरे भी रुलाया है बहुत
बे-सबब आता नहीं अब दम-ब-दम आशिक़ को ग़श
दर्द खींचा है निहायत रंज उठाया है बहुत
वादी ओ कोहसार में रोता हूँ ड़ाढें मार मार
दिलबरान-ए-शहर ने मुझ को सताया है बहुत
वा नहीं होता किसू से दिल गिरफ़्ता इश्क़ का
ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना ख़ुश आया है बहुत
'मीर' गुम-गश्ता का मिलना इत्तिफ़ाक़ी अम्र है
जब कभू पाया है ख़्वाहिश-मंद पाया है बहुत
Mir Taki Mir
Thursday, October 3, 2024
मै तुम्हें इधर उधर ढूढ़ने लगता हूँ
रात को ख्वाबों में तुम मेरे इतने करीब क्यों आते हो,
सुबह सुबह नींद टूटते ही मै तुम्हें इधर उधर ढूढ़ने लगता हूँ।
तेरे दामन से आती है सुकून
तेरे दामन से आती है सुकून, खुशी की खुशबू,
मेरी तमाम तकलीफों का इकलौता इलाज हो तुम।
Friday, September 27, 2024
ज़िंदगी की हर कहानी बे-असर हो जाएगी
ज़िंदगी की हर कहानी बे-असर हो जाएगी
हम न होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी
पावँ पत्थर कर के छोड़ेगी अगर रुक जाइए
चलते रहिए तो ज़मीं भी हम-सफ़र हो जाएगी
जुगनुओं को साथ ले कर रात रौशन कीजिए
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी
ज़िंदगी भी काश मेरे साथ रहती 'उम्र-भर
ख़ैर अब जैसे भी होनी है बसर हो जाएगी
तुम ने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मैं न कहता था कि दुनिया दर्द-ए-सर हो जाएगी
तल्ख़ियाँ भी लाज़मी हैं ज़िंदगी के वास्ते
इतना मीठा बन के मत रहिए शकर हो जाएगी।
राहत Indori
आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है
इक हसरत थी कि आँचल का मुझे प्यार मिले
मैंने मंज़िल को तलाशा मुझे बाज़ार मिले
मुझको पैदा किया संसार में दो लाशों ने
और बर्बाद किया क़ौम के अय्याशों ने
तेरे दामन में बस मौत से ज़्यादा क्या है
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है
जो भी तस्वीर बनाता हूँ बिगड़ जाती है
देखते-देखते दुनिया ही उजड़ जाती है
मेरी कश्ती तेरा तूफ़ान से वादा क्या है
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है
तूने जो दर्द दिया उसकी क़सम खाता हूं
इतना ज़्यादा है कि एहसां से दबा जाता हूं
मेरी तक़दीर बता और तक़ाज़ा क्या है
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है
मैंने जज़्बात के संग खेलते दौलत देखी
अपनी आँखों से मोहब्बत की तिजारत देखी
ऐसी दुनिया में मेरे वास्ते रक्खा क्या है
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है
आदमी चाहे तो तक़दीर बदल सकता है
पूरी दुनिया की वो तस्वीर बदल सकता है
आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है
रामावतार त्यागी
वो सितमगर है तो है
वो सितमगर है तो है
अब मेरा सर है तो है
आप भी हैं मैं भी हूँ
अब जो बेहतर है तो है
जो हमारे दिल में था
अब जुबाँ पर है तो है
दुश्मनों की राह में
है मेरा घर, है तो है
एक सच है मौत भी
वो सिकन्दर है तो है
पूजता हूँ मैं उसे
अब वो पत्थर है तो है
विज्ञान व्रत
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया
सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया
आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया
आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया
अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया
ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया
अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया
कुँअर बेचैन
Sunday, September 22, 2024
हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ
हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ
हर शय में तू ही तू नज़र आए तो क्या करूँ
थम थम के आँख अश्क बहाए तो क्या करूँ
रह रह के तेरी याद सताए तो क्या करूँ
ये तो बताते जाओ अगर जा रहे हो तुम!
मुझ को तुम्हारी याद सताए तो क्या करूँ
माना सुकूँ-नवाज़ है हर शय बहार में
तेरे बग़ैर चैन न आए तो क्या करूँ
हर शेर में सुना तो गया हूँ मैं हाल-ए-दिल
लेकिन तिरी समझ में न आए तो क्या करूँ
हर शय में तू ही तू नज़र आए तो क्या करूँ
थम थम के आँख अश्क बहाए तो क्या करूँ
रह रह के तेरी याद सताए तो क्या करूँ
ये तो बताते जाओ अगर जा रहे हो तुम!
मुझ को तुम्हारी याद सताए तो क्या करूँ
माना सुकूँ-नवाज़ है हर शय बहार में
तेरे बग़ैर चैन न आए तो क्या करूँ
हर शेर में सुना तो गया हूँ मैं हाल-ए-दिल
लेकिन तिरी समझ में न आए तो क्या करूँ
अब इश्क़ से ज़ियादा ग़म-ए-तर्क-ए-इश्क़ है
ये आग बुझ के और जलाए तो क्या करूँ
दिल हो गया है ख़ूगर-ए-बेदाद इश्क़ में
उन की वफ़ा भी रास न आए तो क्या करूँ
उस शर्म-गीं नज़र का तसव्वुर अगर 'शमीम'
बिजली दिल-ओ-नज़र पर गिराए तो क्या करूँ
ये आग बुझ के और जलाए तो क्या करूँ
दिल हो गया है ख़ूगर-ए-बेदाद इश्क़ में
उन की वफ़ा भी रास न आए तो क्या करूँ
उस शर्म-गीं नज़र का तसव्वुर अगर 'शमीम'
बिजली दिल-ओ-नज़र पर गिराए तो क्या करूँ
शमीम जयपुरी
Thursday, September 12, 2024
aapke bina humse raha nahi jaata
aapke bina humse raha nahi jata,
hum aapko bahut chahte hai,
humse kaha nahi jata.
bahti hui ye nadiya,
ghulte hue kinare.
koi toh paar utre,
koi toh paar gujre.
aagaj toh hota hai, anjaam nahi hota,
jab meri kahani mein wo naam nahi hota.
bahte hue aansoo ne aankhon se kaha thamkar,
jo mayy se pihgal jaaye wo jaam nahi hota.
tere visaal ke liye, apne kamaal ke liye,
halat e dil kee thi kharab, aur kharab kee gayi.
Wednesday, September 11, 2024
भड़काएँ मिरी प्यास को अक्सर तिरी आँखें
भड़काएँ मिरी प्यास को अक्सर तिरी आँखें
सहरा मिरा चेहरा है समुंदर तिरी आँखें
फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा
रोएँगी बहुत मुझ से बिछड़ कर तिरी आँखें
ख़ाली जो हुई शाम-ए-ग़रीबाँ की हथेली
क्या क्या न लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें
बोझल नज़र आती हैं ब-ज़ाहिर मुझे लेकिन
खुलती हैं बहुत दिल में उतर कर तिरी आँखें
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
मुमकिन हो तो इक ताज़ा ग़ज़ल और भी कह लूँ
फिर ओढ़ न लें ख़्वाब की चादर तिरी आँखें
मैं संग-सिफ़त एक ही रस्ते में खड़ा हूँ
शायद मुझे देखेंगी पलट कर तिरी आँखें
यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं दोस्त
वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें
मोहसिन नक़वी
Tuesday, September 10, 2024
बस तिरा नाम ही लिखा देखा
दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
बस तिरा नाम ही लिखा देखा
तेरी आँखों में हम ने क्या देखा
कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा
अपनी सूरत लगी पराई सी
जब कभी हम ने आईना देखा
हाए अंदाज़ तेरे रुकने का
वक़्त को भी रुका रुका देखा
तेरे जाने में और आने में
हम ने सदियों का फ़ासला देखा
फिर न आया ख़याल जन्नत का
जब तिरे घर का रास्ता देखा
सुदर्शन फ़ाकिर
Monday, September 9, 2024
वह तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर;देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर -वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादारपेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;श्याम तन, भर बँधा यौवन,नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,गुरु हथौड़ा हाथ,करती बार-बार प्रहार :-सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
चढ़ रही थी धूप;गर्मियों के दिनदिवा का तमतमाता रूप;उठी झुलसाती हुई लू,रुई ज्यों जलती हुई भू,गर्द चिनगीं छा गईं,प्राय: हुई दुपहर :-वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बारउस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;देखकर कोई नहीं,देखा मुझे उस दृष्टि सेजो मार खा रोई नहीं,सजा सहज सितार,सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकारएक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,ढुलक माथे से गिरे सीकर,लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -‘मैं तोड़ती पत्थर।’सीकर - 1. पानी की बूंदें; जल-कण 2. राजस्थान का एक शहर।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
Wednesday, September 4, 2024
मैंनू तेरा शबाब ले बैठा
मैंनू तेरा शबाब ले बैठा,
रंग गोरा गुलाब ले बैठा।
किन्नी-बीती ते किन्नी बाकी है,
मैंनू एहो हिसाब ले बैठा।
मैंनू जद वी तूसी तो याद आये,
दिन दिहाड़े शराब ले बैठा।
चन्गा हुन्दा सवाल ना करदा,
मैंनू तेरा जवाब ले बैठा।शिव कुमार बटालवी
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे जमाना लगे
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
कि आसपास की लहरों को भी पता न लगे.
कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
तूने आंखों से कोई बात कही हो जैसे
हर मुलाकात पे महसूस यही होता है
मुझसे कुछ तेरी नजर पूछ रही हो जैसे
एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफर
जिंदगी तेज बहुत तेज चली हो जैसे
इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूं मैं
मेरी हर सांस तेरे नाम लिखी हो जैसे.
सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं.
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उसको भाते होंगे
वो जो न आने वाला है ना उससे मुझको मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
यारो कुछ तो जिक्र करो तुम उसकी कयामत बांहों का
वो जो सिमटते होंगे उनमें वो तो मर जाते होंगे.
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा
हर बात गवारा कर लोगे मिन्नत भी उतारा कर लोगे
तावीजें भी बंधवाओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा
जब सूरज भी खो जाएगा और चांद कहीं सो जाएगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा.