वह तोड़ती पत्थर;देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर -वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादारपेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;श्याम तन, भर बँधा यौवन,नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,गुरु हथौड़ा हाथ,करती बार-बार प्रहार :-सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
चढ़ रही थी धूप;गर्मियों के दिनदिवा का तमतमाता रूप;उठी झुलसाती हुई लू,रुई ज्यों जलती हुई भू,गर्द चिनगीं छा गईं,प्राय: हुई दुपहर :-वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बारउस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;देखकर कोई नहीं,देखा मुझे उस दृष्टि सेजो मार खा रोई नहीं,सजा सहज सितार,सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकारएक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,ढुलक माथे से गिरे सीकर,लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -‘मैं तोड़ती पत्थर।’सीकर - 1. पानी की बूंदें; जल-कण 2. राजस्थान का एक शहर।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
Monday, September 9, 2024
वह तोड़ती पत्थर
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