Sunday, September 22, 2024

हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ

 

हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ 
हर शय में तू ही तू नज़र आए तो क्या करूँ 

थम थम के आँख अश्क बहाए तो क्या करूँ 
रह रह के तेरी याद सताए तो क्या करूँ 

ये तो बताते जाओ अगर जा रहे हो तुम! 
मुझ को तुम्हारी याद सताए तो क्या करूँ 

माना सुकूँ-नवाज़ है हर शय बहार में 
तेरे बग़ैर चैन न आए तो क्या करूँ 

हर शेर में सुना तो गया हूँ मैं हाल-ए-दिल 
लेकिन तिरी समझ में न आए तो क्या करूँ 

अब इश्क़ से ज़ियादा ग़म-ए-तर्क-ए-इश्क़ है 
ये आग बुझ के और जलाए तो क्या करूँ 

दिल हो गया है ख़ूगर-ए-बेदाद इश्क़ में 
उन की वफ़ा भी रास न आए तो क्या करूँ 

उस शर्म-गीं नज़र का तसव्वुर अगर 'शमीम' 
बिजली दिल-ओ-नज़र पर गिराए तो क्या करूँ 


शमीम जयपुरी



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