Saturday, October 19, 2024

कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए

कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए
तुम्हारा हिज्र बहुत दूर से गुज़र जाए

उदासियों से भरी कच्ची उम्र की ये नस्ल
जो शायरी न करे तो दुखों से मर जाए

पचास लोगों से वो रोज़ मिलती है और मैं
किसी को देख लूँ तो उस का मुँह उतर जाए

घटा छटे तो दिखे चाँद भी सितारे भी
जो तुम हटो तो किसी और पर नज़र जाए

हज़ार साल में तय्यार होने वाला मर्द
उस एक गोद में सर रखते ही बिखर जाए

मैं उस बदन से सभी पैरहन उतारूँ और
अंधेरा जिस्म पे कपड़े का काम कर जाए

मेरी हवस को कोई दूसरा मयस्सर हो
तुम्हारा हुस्न किसी और से सँवर जाए

कुशल दौनेरिया

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