मेरे अरमाँ खामोश हैं मग़र अश्क़ शोर करते हैं
ख़ामोशी ओढ़े बैठी मैं और लहज़े जोर करते हैं
मेरे अश्क़ उसे बर्दाश्त नहीं क्या उसका इश्क़ हैं
सच में उसके लफ़्ज़ दिल पर असर घोर करते हैं
कितनी बार कहा हैं मेरी जान तू यूँ रोया ना कर
क्या कहें के तेरे अश्क़ कितना कमजोर करते हैं
पल-पल की घुटन,ठहरा दर्द,मरने पे आमादा मैं
ये बीते लम्हें मेरे जीना क्यूँ इतना कठोर करते हैं
कमरे की दिवारे बोल पड़ी हम ढह जाएंगी यारा
तेरे रात के अश्क़ हम पर असर घनघोर करते हैं
कृष्णा ये जो धीमा-धीमा रोज का दर्द हैं ज़हर हैं
मौत के दर पर हर रोज थोड़ी-थोड़ी ठोर करते हैं...
- कृष्णा शर्मा
Wednesday, November 27, 2024
मेरे अरमाँ खामोश हैं मग़र अश्क़ शोर करते हैं
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