तुम्हारी नफरत भी न कम कर सकेगी,
मेरी मोहब्बत को,
तुम्हारी बगावत भी न खत्म कर सकेगी,
मेरी उलफत को,
तुम से इश्क करना मेरी आदत,
तुम्हारी हिदायत भी न बदल सकेगी,
मेरी फितरत!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment