चाँद तो अपनी चाँदनी को ही निहारता है,
उसे कहाँ खबर कोई चकोर प्यासा रह जाता है...
तस्वीर बना कर तेरी आस्मां पे टांग आया हूँ ,
और लोग पूछते हैं आज चाँद इतना बेदाग़ कैसे है।
रात भर तेरी तारीफ़ करता रहा चाँद से,
चाँद इतना जला, कि सूरज हो गया...
तू चाँद और मैं सितारा होता, आसमान में एक आशियाना हमारा होता,
लोग तुम्हे दूर से देखते,नज़दीक़ से देखने का, हक़ बस हमारा होता..
रात में एक टूटता तारा देखा बिलकुल मेरे जैसा था,
चाँद को कोई फर्क नहीं पड़ा बिलकुल तेरे जैसा था....
कुछ तुम कोरे कोरे से, कुछ हम सादे सादे से
एक आसमां पर जैसे, दो चाँद आधे आधे से.
हमारे हाथों में इक शक्ल चाँद जैसी थी ,
तुम्हे ये कैसे बतायें वो रात कैसी थी.....
तुम आ गये हो तो फिर चाँदनी सी बातें हों.
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है .
मुहब्बत में झुकना कोई अजीब बात नहीं,
चमकता सूरज भी तो ढल जाता है चाँद के लिए...
खूबसूरत गज़ल जैसा है तेरा चाँद सा चेहरा,
निगाहे शेर पढ़ती हैं जो लब इरशाद करते है।
बेसबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साजिश छुपा रहा है चाँद
तुम सुबह का चाँद बन जाओ, मैं सांझ का सूरज हो जाऊँ,
मिलें हम-तुम यूँ भी कभी, तुम मैं हो जाओ, मैं तुम हो जाऊँ
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ,
अभी मैं ने देखा है चाँद भी किसी शाख़-ए-गुल पे झुका हुआ!
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा,
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा....
ना चाँद चाहिए ना फलक चाहिए,
मुझे बस तेरी की एक झलक चाहिए...
ये दिल न जाने क्या कर बैठा,
मुझसे बिना पूछे ही फैसला कर बैठा,
इस ज़मीन पर टूटा सितारा भी नहीं गिरता,
और ये पागल चाँद से मोहब्बत कर बैठा..
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